इस्लाम धर्म- इस्लाम धर्म में शरा और वेशरा दो प्रकार की कोटियाँ है। शरा सनातनी और बेशरा मस्तमौला फकीर थे। ये कभी कभार पीर-पैग़म्बर के चमत्कारपूर्ण करिश्मों का आश्रय लिया करते हैं। ये अपने क्रिया कलापों में इस्लाम के मूल सिद्वांतों की भी उपेक्षा कर देते थे। इनका एक समुदाय ‘मजजूब’ नाम से प्रसिद्व हैं, जिनके अनुयायी न तो रोजा-नमाज को मानते हैं न पैगबंर के प्रति आस्थावान हैं। बेशरा साधक ‘मलावती’ कहलाते हैं, जो खुदा के कृपापात्र समझे जाते हैं। बेशरा संप्रदाय के अंतर्गत मदारी, मलंग, कलंदरी, रसूलशाही, लालशाह बाजि या,मूसा सुहागिया आदि कई उपसंप्रदाय हैं । इनकी अपनी-अपनी विशेषाताएँ हैं।
भारतीय सूफी बेशरा के अंतर्गत आते है। जो इस्लाम के अनुयायी होकर भी सनातनपंथी मुसलमानों से सब समय सर्वत्र मेल नहीं खाते। ऐसे संप्रदायों में पाँच मुख्य हैं: चिश्ती, कादिरी, सूहरवर्दी, नक्षबंदी और शत्तारी। चिश्ती संप्रदाय के दो उपसंप्रदाय हैं-साबिरी और निजामी। फिर निजामी की दो शाखाएं हैं-हिशमी और हाजशाही। इसी प्रकार कादिरी संप्रदाय की दो शाखाएं हैं -बहाबिया और रजाकिया। इनकी भी प्रशाखाएं हैं-मुकीम शाही और नौशाही। नौशाही के प्रवर्तक हाजी मुहम्मद बतलाये जाते है। इनके चार शिष्यों में से दो के नाम पर शाखाएं ‘पाक रहमानी’ और ‘सचयारी’ के रूप में प्रसिद्ध हुई। इसी प्रकार के सरशाही और बेनवा जैसे दो अन्य संप्रदाय भी है। पंजाब के ऐसे ही संप्रदायों में हुसेनशाही और मियांखेल संप्रदायों के नाम लिये जाते हैं। सुहरवदी संप्रदाय के अंतर्गत जलाली, मखदूमी, मीरनशाही, दीलाशाही, इस्माइलशाही आदि कई शाखाएं हैं। नक्षबंदी सूफियों को सनातनी मुसलमानों में बहुत सम्मान प्राप्त हैं। औरंगजेब इन्हीं का मुरीद था। इन्हें संगीत व नृत्य के अतिरिक्त पीरपूजा, समाधिपूजा और दीपदान जैसी पद्धति स्वीकार्य नहीं है। शत्तारी संप्रदाय वाले कादिरी संप्रदाय वालों की तरह वस्त्र धारण करते हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो बाल नहीं रचाते और धर्मिक पाबंदियों के प्रति उदासीन रहते है। जो हो, सूफी-सम्प्रदाय भी भक्ति-आदोंलन के प्रभाव से अछूता न रह सका और उसकी भक्ति प्रेमाभक्ति के साँचे में ढ़लने लगी थी।
केरल का शास्तपूजक संप्रदाय बंगाल के धर्म-ठाकुर, सहजिया, बाउल, सत्यपीर, कर्ताभाजा आदि संप्रदाय; उड़ीसा का पंचसखा संप्रदाय; महारष्ट्र के वारकरी और महानुभाव-संप्रदाय भक्ति आंदोलन की ही उपज है। जिनके अनुयायियों द्वारा भक्तिकाव्य की रचना हुई और इस प्रकार भक्ति साहित्य का विपुल भंडार समृद्ध हुआ। इस प्राकर कुल मिलाकर कुछ-कुछ प्रभाव हर संम्प्रदाय का उस समय था।
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