Thursday, 2 October 2025

परिवर्तन नहीं परावर्तन की शताब्दी

* 'परावर्तन' को विज्ञान घटना कहता है। जिसमें प्रकाश की किरणें किसी सतह से टकरा कर उसी माध्यम से वापस लौट जाती हैं।

* 'परावर्तन' सामाजिक सरोकार की एक ऐसी घटना है, जो मूल से निकले दिशा बदल चुके, पंथों को दुलराती,सहलाती और आच्छादित करती 'स्वत्व' का बोध कराता है।

* 'परावर्तन' एक राष्ट्रीय संकल्पना है, जिसमें पंथ, वर्ग, जाति, लिंग, भाषा, भूषा और क्षेत्र का सप्तरंगी इंद्रधनुष बनता है, जो अ-राष्ट्रीय तत्वों, विभेदक नीतियों और विध्वंसकारी संभावनाओं का समूलाग्र उच्चाटन करता है।

* परावर्तन वह व्याप्ति है, जो वैश्विक क्षितिज को स्पर्श करती , उषा की भगवा आभा बिखेरते हुए, प्रचंड भास्कर का सर्वकष मार्ग प्रशस्त कर आहत, अतृप्त, आकांक्षी मनुष्यता को संध्या और रात्रि की गहनतम होती संम्भावनाओं से निकाल कर अर्काय स्वरूप को प्रदीप्त करने राकापति के मधु की वर्षा के साथ औषधीय संरेचन का कार्य करता है।

* 'परावर्तन' वह आध्यात्मिक अंत: सलिला है, जो अन्नमय कोष (भु:भुव स्व की यात्रा को) प्राण मय कोष के वाहन में प्रतिस्थापित कर मन और उसकी सारथी इंद्रियों का शिथिलीकरण कर वि-ज्ञान की किरणों से उन्हें उर्ध्व मुखी बना चेतना की समिधा बना कर चेतना के प्रार्थनाओं और आहुतियों के 'चिति' में स्वाहा करती आनन्द मय कोष,रसो वै स: का बोध कराती है। 

* यह द्वय का परावर्तन है। परिवर्तन के कारण मूल से बिखरी और विखंडित होती आकांक्षाओं का शीतलीकरण है।

* परावर्तन नैसर्गिक है तो परिवर्तन सुनियोजित /आकस्मिक योजना /घटना है।  

* परिवर्तन में संम्भावनाओं का द्वंद्व है , तो परावर्तन में विकृतिकरण की संम्भावनाओं की इति है।

समझना होगा -

* शताब्दी परिवर्तन और सम्भावनाओं की नहीं। परावर्तन और समाधानों की है।

*शताब्दी लौकिक व्यवहार के परिमार्जन और एकात्मकता के आह्वान की है।

* शताब्दी सनातन की आभा में व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की चेतना को भारतीय चिति में व्याप्तीकरण की घटती घटना है।

* यह उनकी नहीं हमारी शताब्दी है। यह कैलेंडर की नहीं, कर्म पथ की शताब्दी है।

* यह शस्र और शास्त्र की शताब्दी है। अर्थ और काम के धर्म में विसर्जन की शताब्दी है।

* यह नौनिहालों का आगत, युवाओं के स्वागत और वृद्धों के अभिनंदन की शताब्दी है।

* यह वनवासी, गिरि कंदरा निवासी, ग्राम और नगर की परम्पराओं के स्मरण की शताब्दी है।

* देव, मनुष्य,यक्ष, राक्षसों की 'द' के बोध की शताब्दी है। 

* यह दधीचि,शिवि,राम और कृष्ण के दान,दया, त्याग और पुरुषार्थ की शताब्दी है।

* यह बुद्ध के करुणा, चाणक्य के बुद्धि तथा चंद्र गुप्त के शौर्य की शताब्दी है।

* यह केवल सिंदूर की नहीं, तो हल्दी, दूर्वा, कुमकुम से सजी वह अभिमंत्रित थाली है,जो वसुंधरा के भाल पर तिलक करने उद्यत है।

* सन्नद्ध है, मंगलकारी सुप्रभात के उषा (भगवा) के प्रणाम की। 

आइए,जन गण मन की शताब्दी के सरोकारों का अवगाह्न कर जीवन के पुरुषार्थ को चरितार्थ करें।

विजयादशमी 
2025

2 comments:

  1. विजयादशमी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐

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