चैतन्य तो अशुद्ध हो ही नहीं सकता? जो अशुद्ध है वह चैतन्य नहीं है।
बुद्धत्व ऐसा मील का पत्थर है जो ब्रह्म का दर्शन सम्यकता में बताता है।
विराट चैतन्य में स्व चैतन्य की विराटता का बोध बुद्धत्व की ओर ले जाता है।
इस देश की गढ़ी गई दलित आवृत- चेतना यदि बुद्ध के सहारे जाति की सामूहिक-राजनैतिक- चेतना से अनावृत हो जाये तो बुद्ध का स्मरण सार्थक होगा।
यह ठीक है कि भगवान समर्पित भक्तों के सहारे ही जिंदा रहते हैं, किंतु यदि मंदिर का आकार छोटा हुआ तो भक्त और भगवान दोनों व्यक्तिगत से समष्टिगत यात्रा नहीं कर पाते।
करुणा छोटे तालाब में नीर हैं, जहां नीर-छीर विवेक की आवश्यकता होती है, किंतु सागर में वही नीर विशाल जलराशि बन जाती है, जो अनेक रूपों में जगतव्यापी और लोक कल्याण कारी सिद्ध होती है।
सनातन की जय हो। वेद श्रद्धामय हों। भारतवर्ष अजेय हो।
शुभकामनाएं
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