पहली सूची पर हमने आपत्ति की थी। अब सुधर कर आई है, देखते हैं क्या हुआ?
प्रश्न यह है कि क्या इस सूची में मंत्रालय और संचालनालय और बड़े शहरों की संस्थाओं में बैठे दस हजार एजीपी के प्राध्यापकों ने अपना नाम दिया है, यदि नहीं तो क्यों? उनके पास प्रशासनिक अनुभव है, फिर हिचकिचाहट क्यों?
जो सूची बनी है उनका साक्षात्कार कौन लेगा?
क्या मंत्रालय, संचालनालय या एडी और एक्सीलेंस महाविद्यालयों में बैठे विद्वान?
साक्षात्कार के मापदंड क्या होंगे?
क्या इसमें सेवा निवृत्त नियमित प्राचार्यों को नहीं रखना चाहिए?
प्रश्न बहुत हैं, उत्तर केवल अच्छे भारतीय ज्ञान परम्परा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समझने वाले प्राचार्य हों।
कुछ अपेक्षाएं -
निडर हों, नियमों के जानकार हों, जिससे उच्च अधिकारियों के नियम विरुद्ध मौखिक आदेश पर चिन्हित पार्टियों को सरकारी सप्लाई का काम न दें।
जनभागीदारी अध्यक्ष के नियम विरुद्ध आदेश की अवहेलना नियम के तहत कर सके।
विद्यार्थियों से आंख मिलाकर बात कर सके। शिक्षकों पर नैतिक प्रभाव बनाने में सक्षम हों।
परीक्षा में सुचिता के लिए प्रतिबद्ध हों।
क्रय विक्रय का ज्ञान हो, जिससे उनकी अक्षमता के कारण रूसा -वर्ल्ड बैंक को अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर जैम से क्रय न करना पड़े, भ्रष्टाचार रुके।
बाबू या लैब तकनीकीशियन और कम्प्यूटर सहायक के ऊपर निर्भर न हों।
ईमेल करना, पढ़ना आता हो। हिन्दी और अंग्रेजी टाइपिंग आती हो।
पढ़ने -पढ़ाने में रुचि हो, सप्ताह में दो क्लास सामान्य ज्ञान और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर ले सके।
शोध का जानकार हो। शोध की अलग अलग प्रवृत्ति पर कार्य करा सके।
गुणात्मक और वैश्विक मापदंडों पर महाविद्यालय में शोध पत्र -पत्रिका निकालने, पंजीकृत कराने की क्षमता हो।
शिक्षक प्रशिक्षण ( विषयवार) कराने की दृष्टि हो।
अभिभावकों और शिक्षक -विद्यार्थियों के बीच सेतु बन सके।
विद्यार्थियों को ग्राम विकास के प्रकल्पों से जोड़ सके।
रोजगार के अवसर दें सके।
शेष शुभ।
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कुछ सुझाव आपसे भी अपेक्षित हैं।
त्वरित सुझाव आये हैं -
जिनसे परहेज करें -
१_ऐसे प्राध्यापकों का साक्षात्कार नहीं कराया जाना चाहिए जिसने आज़ तक किराये का राशि रू 14 लाख जमा नहीं किया है..!
२- जो लोग नियम विरुद्ध लोगो को जनभागीदारी समिति से बिना विज्ञापन और मेरिट लिस्ट के नियुक्ति दिया और स्थायी कर्मी किया है..!
३- उन लोगों का साक्षात्कार नहीं लेना चाहिए जो पीएचडी करने शोध केंद्र गये ही नही...!
४- जो लोग क्रय नियम के विरुद्ध खरीदी किया है...!
५- ऐसे लोग जो नियम विरुद्ध सेल्फ फाइनेंस के अतिथि विद्वानों का पैसा डकार गए...
६- जिस कालेज में बिना प्रैक्टिकल के परीक्षा कराया...? उस कालेज के प्राचार्य और शिक्षकों का साक्षात्कार कराने से प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस और बर्बाद होगा....!
७- एक कक्षा में 300 छात्र छात्राओं का फर्जी उपस्थिति सत्यापन करने वाले प्राध्यापक और प्राचार्य का साक्षात्कार नहीं कराना चाहिए अन्यथा प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस का नाम बदनाम होगा..?
प्राध्यापकों या प्राचार्यों जिनकी सेवानिवृत्ति में मात्र कुछ माह शेष हैं उनसे भी आवेदन की अनिवार्यता की गई।
ReplyDeleteयह प्रशासन की विफलता ही मानी जानी चाहिए कि एक्सीलेंस कॉलेज में पदस्थ करने के लिए उपलब्ध अभिलेखों पर विश्वास और विचार नहीं किया। जानकारी प्राप्त करने के लिए प्राचार्य एवं प्राध्यापकों पर निर्भर हो जाना विपरीत स्थिति ही है।
प्राचार्य या प्राध्यापक का साक्षात्कार कनिष्ठ के द्वारा नहीं लिया जाना चाहिए इससे बचने के लिए सेवा निवृत प्राध्यापकों की सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं।
Good questions raised in this article and hope that we will get solution in the coming blog
ReplyDeleteआपकी निराशा प्रासंगिक है। शुभ की अपेक्षा व्यर्थ है।इस व्यवस्था को प्रश्रय किसने दिया? अब दुसरों पर आरोप-प्रत्यारोप अवांछित है। जिन आदर्शों की स्थापना करने का संकल्प था, काल के गाल में समा गया। भय का वातावरण व्याप्त है। आप जैसे व्यक्तित्व की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया करते भी असहज लगता है।
ReplyDeleteआपके प्रश्न बहुत ही प्रासंगिक है इससे प्रक्रिया मे सुधार हेतु मार्गदर्शन प्राप्त होगा
ReplyDelete👏🏻👏🏻🙏🏻
ReplyDeleteपी एम कालिज ऑफ़ एक्सिलेंस में,"एक्सिलेंस" की क्या परिभाषा दी गई है?? तदनुसार, संस्था होगी/बनेगी/बनाई जाएगी। चूंकि, संस्था के नाम में पी एम शब्द है अतः,यह माना जा सकता है कि चयन अखिल भारतीय स्तर पर तथा,धन का निवेश और खर्च की मानिटरिंग भी केन्द्र सरकार के मानदंड पर होगा।
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