Monday, 23 September 2024

प्रस्थान त्रयी

 

                          प्रस्थान त्रयी

 उपनिषद, गीता तथा ब्रह्म-सूत्र को मिलाकर प्रस्थान त्रयी कहा जाता है।जिनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों मार्गों का तात्त्विक विवेचन है। ये  वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं। इनमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, भगवद्गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं।

ब्रह्मसूत्र के रचयिता बादरायण हैं । इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरिक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है । 

प्राचीन काल में भारतवर्ष में जब कोई गुरु अथवा आचार्य अपने मत का प्रतिपादन एवं उसकी प्रतिष्ठा करना चाहता था तो उसके लिये सर्वप्रथम वह इन तीनों पर भाष्य लिखता था। 

आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, माधवाचार्य और निम्बकाचार्य आदि बड़े-बड़े आचार्यों ने ऐसा करके ही अपने मत का प्रतिपादन किया।

Friday, 20 September 2024

कालेज आफ पी एम एक्सीलेंस

पहली सूची पर हमने आपत्ति की थी। अब सुधर कर आई है, देखते हैं क्या हुआ?

प्रश्न यह है कि क्या इस सूची में मंत्रालय और संचालनालय और बड़े शहरों की संस्थाओं में बैठे दस हजार एजीपी के प्राध्यापकों ने अपना नाम दिया है, यदि नहीं तो क्यों? उनके पास प्रशासनिक अनुभव है, फिर हिचकिचाहट क्यों?

जो सूची बनी है उनका साक्षात्कार कौन लेगा?

क्या मंत्रालय, संचालनालय या एडी और एक्सीलेंस महाविद्यालयों में बैठे विद्वान?

साक्षात्कार के मापदंड क्या होंगे?
क्या इसमें सेवा निवृत्त नियमित प्राचार्यों को नहीं रखना चाहिए?

प्रश्न बहुत हैं, उत्तर केवल अच्छे भारतीय ज्ञान परम्परा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समझने वाले प्राचार्य हों।

कुछ अपेक्षाएं -

निडर हों, नियमों के जानकार हों, जिससे उच्च अधिकारियों के  नियम विरुद्ध मौखिक आदेश पर चिन्हित पार्टियों को सरकारी सप्लाई का काम न दें।

जनभागीदारी  अध्यक्ष के नियम विरुद्ध आदेश की अवहेलना नियम के तहत कर सके।

विद्यार्थियों से आंख मिलाकर बात कर सके। शिक्षकों पर नैतिक प्रभाव बनाने में सक्षम हों।

 परीक्षा में सुचिता के लिए प्रतिबद्ध हों।

क्रय विक्रय का ज्ञान हो, जिससे उनकी अक्षमता के कारण रूसा -वर्ल्ड बैंक को अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर जैम से क्रय न करना पड़े, भ्रष्टाचार रुके।

 बाबू या लैब तकनीकीशियन और कम्प्यूटर सहायक के ऊपर निर्भर न हों।

ईमेल करना, पढ़ना आता हो। हिन्दी और अंग्रेजी टाइपिंग आती हो।

पढ़ने -पढ़ाने में रुचि हो, सप्ताह में दो क्लास सामान्य ज्ञान और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर ले सके।

शोध का जानकार हो। शोध की अलग अलग प्रवृत्ति पर कार्य करा सके।

गुणात्मक और वैश्विक मापदंडों पर महाविद्यालय में शोध पत्र -पत्रिका निकालने, पंजीकृत कराने की क्षमता हो।

शिक्षक प्रशिक्षण ( विषयवार) कराने की दृष्टि हो।

अभिभावकों और शिक्षक -विद्यार्थियों के बीच सेतु बन सके।

विद्यार्थियों को ग्राम विकास के प्रकल्पों से जोड़ सके।

रोजगार के अवसर दें सके।

शेष शुभ। 

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कुछ सुझाव आपसे भी अपेक्षित हैं।

त्वरित सुझाव आये हैं -

जिनसे परहेज करें -
१_ऐसे प्राध्यापकों का साक्षात्कार नहीं कराया जाना चाहिए जिसने आज़ तक किराये का राशि रू 14 लाख जमा नहीं किया है..!

२- जो लोग नियम विरुद्ध लोगो को जनभागीदारी समिति से बिना विज्ञापन और मेरिट लिस्ट के नियुक्ति दिया और स्थायी कर्मी किया है..!

३- उन लोगों का साक्षात्कार नहीं लेना चाहिए जो पीएचडी करने शोध केंद्र गये ही नही...!

४- जो लोग क्रय नियम के  विरुद्ध खरीदी किया है...!

५- ऐसे लोग जो नियम विरुद्ध सेल्फ फाइनेंस के अतिथि विद्वानों का पैसा डकार गए...

६- जिस कालेज में बिना प्रैक्टिकल के परीक्षा कराया...? उस कालेज के प्राचार्य और शिक्षकों का साक्षात्कार कराने से प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस और बर्बाद होगा....!

७- एक कक्षा में 300 छात्र छात्राओं का  फर्जी उपस्थिति सत्यापन करने वाले प्राध्यापक और प्राचार्य का साक्षात्कार नहीं कराना चाहिए अन्यथा प्रधानमंत्री कॉलेज आफ एक्सीलेंस का नाम बदनाम होगा..?

दिल्ली और भाजपा का भविष्य

दिल्ली और भाजपा का भविष्य 
 
 * दिल्ली में आतिशी जी का राज क्या भाजपा के लिए संजीवनी सिद्ध होगा।
* दिल्ली विधानसभा चुनाव तक वे दिल्ली की मुख्यमंत्री रहेंगी।
* उनकी प्राथमिकता और कमजोरी-
# केजरीवाल की लोकप्रियता बनाये रखना होगा।
# अरविन्द केजरीवाल के निर्देशों का पालन करना।
# विधायकों और मंत्रियों को अपने निर्देशों को पालन करने को राजी करना।
# पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच केजरीवाल को धुरी बनाये रखना।
# एल जी के साथ टकराव को बचाना।
*  देखना होगा आतिशी का मुख्यमंत्री के रूप में सफर दिल्ली वासियों और आगामी विधानसभा के लिए कितना सहायक होगा!
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भाजपा के लिए -
*  वर्ष 1996 में मदन लाल खुराना ने  उनका नाम जैन हवाला कांड में आने से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था।
* तब उन्होंने भी लगभग वही कहा था जो अब केजरीवाल कह रहे हैं। खुराना ने कहा था कि वे कोर्ट से आरोपमुक्त होने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे।
* पार्टी की तत्कालीन गुटबाजी ने ऐसा नहीं होने दिया और प्रयोग का जो दौर चला, भाजपा को दिल्ली राज्य की सत्ता से आज तक दूर रखा।
* यहीं से भाजपा का ग्राफ नीचे जाना प्रारंभ हुआ जो आज भी नहीं सुधर रहा है।
* बाद में साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज के नाम पर पार्टी में सहमति बनी थी।
*  सुषमा स्वराज दिल्ली की 12 अक्तूबर, 1998 से लेकर 3 दिसंबर, 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।

* वे  इस छोटे से कार्यकाल में दिल्ली के लिए कोई परिणाम मूलक काम नहीं कर सकीं।

करणीय -

* भाजपा को यदि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतना है तो पुराने प्रयोग की समीक्षा कर काम करना होगा।
* दिल्ली के सातों सांसद, केन्द्र सरकार के बजनदार मंत्री, संगठन के प्रभावी छत्रपों को समन्वय बनाना होगा।
* सेवा बस्तियों से लेकर लुटियन ज़ोन तक साधना होगा। कठिन लेकिन असाध्य नहीं है। बस पन्ना प्रमुखों तक को सक्रिय करना होगा।
* प्रवक्ताओं की ऐसी टीम हर वार्ड तक तैयार करनी होगी जो रोज टीवी डिवैट, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम और x पर तथ्यों के साथ सक्रिय रहें।
* वैचारिक परिवार को साध कर तालमेल बनाना होगा।

कांग्रेस -
# रजिया सुल्तान के शासन के सात सौ साल से भी अधिक समय बाद, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 
 
# शीला दीक्षित ने लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली पर सरकार चलाई।  किसी भी दल के लिए दिल्ली में लंबा कार्यकाल माना जाता है।
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बाक्स -
*  केजरीवाल का भविष्य क्या-  बोरा जी - अर्जुन सिंह जी का सिद्ध होगा ?
या खुराना -वर्मा -सुषमा स्वराज का।
* फिर भी क्या अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक रूप से ख़ारिज किया जा सकता है?
* क्या आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा या कांग्रेस के लिए  आम आदमी पार्टी (आप) को चुनौती देना आसान होगा?
* यह भी सत्य है कि इस बार 
 दिल्ली विधानसभा में काबिज होने के लिए कांग्रेस और भाजपा अपनी पूरी ताकत झोंकेंगी। 
* भाजपा नेतृत्व यह नहीं भूल सकता कि वह  दिल्ली की सत्ता से  1998 से बाहर है। 
* लंगड़ी कांग्रेस और भ्रष्टाचार के दल-दल में फंसीं आप से भाजपा कैसे दिल्ली छीनती है,यह भविष्य के गर्त और भाजपा और संघ परिवार की एक जुटता पर निर्भर करती है।
* यह भी सत्य है कि भाजपा को इससे अच्छा अवसर आगे मिलेगा भी की नहीं?