Saturday, 13 January 2024

राम की व्याप्ति और विस्तार

राम की व्याप्ति और विस्तार: राम के परिचय का आधार ‘रामकथा’ हमारी स्मृति का अनिवार्य हिस्सा है। भारतीय संस्कृति और जन-मन की आन्तरिक संरचना के ताने-बाने को रचने में ‘रामकथा’ की भूमिका सर्वाधिक है। मानवीय चेतना के उदात्त-मूल्यों का सृजन ‘रामकथा’ के मूल में है।

 बाज़ारवादी और उपभोक्तावादी अमानवीय मूल्यों के वर्तमान दौर में शाश्वत मानवीय मूल्यों की भारतीय छवि को इस कथा ने निरूपित किया है। इसी रूप में इस कथा की कालजयता भी सिद्ध होती है। ‘रामकथा’ में निबद्ध संवेदना ‘औपनिवेशिक आधुनिकता’ के समानान्तर भारतीयता के मूल स्वत्वों का विस्तार करती है। समय के बदलावों में इस कथा की शक्ति कभी क्षीण नहीं हुई। ‘राम’ की कथा-संस्कृति की यह व्यापकता ही है कि इतिहास के परिवर्तन के साथ इस कथा का विस्तार होता चला गया। ‘राम’ ने अपने जीवन से लोक की संवेदना को समृद्ध किया तो लोक ने ‘रामकथा’ को युगानुरूप विकसित भी किया। राम से अधिक राम के नाम की महिमा है। तुलसीदास कहते हैं, ‘राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी।।’

 राम को जानने का मूल आधार वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ संस्कृत भाषा की अनुपम कृति है। यह राम का परिचय कराने वाली आदि रचना है। आदि कवि वाल्मिकि के ‘रामायण’ के बाद ही साहित्य और समाज में राम का परिचय आया। संस्कृत के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में इस रामायण को स्रोत रूप में ग्रहण किया गया। काव्य, नाटक, कथा और अन्य साहित्यिक विधाओं में ‘रामायण’ को आधार बनाकर विपुल साहित्य का सृजन हुआ।

 राम के जीवन पर शोध करने वाले कामिल बुल्के अपने शोध ग्रन्थ ‘रामकथा’ में लिखते हैं, ‘रामकथा अनेक रूपधारण करते हुए शनै:-शनै: संपूर्ण भारतीय-संस्कृति में व्याप्त हो गयी है। उसकी अद्वितीय लोक प्रियता निरन्तर अक्षुण्ण ही नहीं वरन् शतादियों तक झलक मिलती है। इन कृतियों में ‘भुशुण्डिरामायण’, ‘योगवसिष्ठ’, ‘अध्यात्मरामायण’, ‘अद्भुत्रामायण’, ‘आनन्द -रामायण’, प्रमुख हैं।’

 वेदोत्तर काल में रामायण, उपनिषद् और बौद्ध, जैन साहित्य में भी रामकथा व्याप्त है। भारतीय दृष्टि से बौद्ध परम्परा में श्रीराम से संबंधित दशरथजातक, अनामकजातक तथा दशरथकथानक नामक तीन जातक कथाएँ उपलब्ध हैं। जैनसाहित्य में रामकथा सम्बन्धी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें मुख्य हैं- विमलसूरिकृत ‘पउमचरियं’ (प्राकृत), आचार्य रविशेणकृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ’ (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्रपुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तरपुराण (संस्कृत)। परमार भोज ने भी ‘चंपुरामायण’ की रचना की थी।
 कालान्तर में पुराणों में राम के जीवन वृत्त में अवतारवाद को विशेष महत्त्व मिला। पुराणों में राम को विष्णु का अवतार माना गया। ‘राम’ का जीवन हमारे संवेगों को अधिक प्रभावित करता हैं। कुबेरनाथराय ‘रामायणमहातीर्थम्’ नामक पुस्तक में लिखते हैं, ‘श्रीराम भारतीय परंपरा में सर्वाधिक व्यापक और संकल्प-संवेग-संपन्न नायक हैं। भारतीय परंपरा पूरे एक समाज के सामने आती है और वह समाज भारत के आज के मानचित्र से ज्यादा व्यापक  है। वे लिखते हैं - “वह वंक्षुधारा से लेकर पूर्वीद्वीप समूह तक के संपूर्ण मनोमय भारत से है। यानी ‘सेरेहिन्दी’, ‘लघुहिन्दी’, ‘हिन्दखास’ एवं ‘हिन्देशिया’ के साथ-साथ महाचीन-तिब्बत तक। इस समूचे विशाल भूखण्ड में कुरतन (खोतान) से ले कर कम्पूचिया तक राम कथा के भिन्न-भिन्न संस्करण पाये जाते हैं। 


इस प्रकार इस बहुरूपी विस्तार से इसकी आन्तरिक ऋद्धि तो समृद्धतर हुई ही है, यह तथ्य इस बात का भी संकेत देता है कि राम का वास्तविक इतिहास है।’’

 तात्पर्य यह कि भारतीय भाषाओं में राम का विचार करते ही सबसे पहले ध्यान में आता है कि राम के चरित के विभिन्न आयामों का कवियों ने जिस आधार पर वर्णन किया, उसे रामायण या रामोपाख्यान कहा गया। आज की स्थिति में रामाकथा पर आधारित ग्रंथ तीन सौ से लेकर तीन हजार तक की संख्या में विविध रूपों में मिलते हैं। श्रीराम का चरित वाल्मीकीय रामायण के बाद व्यास रचित महाभारत में भी ‘रामोपाख्यान’ के रूप में आरण्यक पर्व (वनपर्व) में प्राप्त होता है। इसकेअतिरिक्त ‘द्रोणपर्व’तथा‘शांतिपर्व’ में भी राम के सन्दर्भ उपलब्ध हैं।

 राम के वृत्त ग्रंथ संस्कृत और हिन्दीतर भारतीय भाषाओं में जैसे- मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु तथा उडिय़ा, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, असमिया, उर्दू, आदि में मिलते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ में न केवल उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया है, बल्कि इस ग्रंथ ने विश्व के कोने-कोने में श्रीराम के चरित को पहुँचाया है। भगवान भोलनाथ आदिदेव महादेव से प्रारंभ होकर यह राम का चरित, महर्षि नारद, लोमश, यज्ञवल्क्य, कागभुशुण्डि, महाकवि कालिदास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, समर्थ रामदास, संत तुकड़ोजी महाराज, केशवदास, सूरदास, स्वामी करपात्री, मैथिलीशरण गुप्त, आदि ऋषियों-मुनियों, संतों, आचार्यों और कवियों ने अलग-अलग भाषाओं में राम को जन-जन तक पहुँचाया है। अकबर की अनुमति से अब्दुल रहीम खानखाना के लिए रामायण की एक प्रति तैयार की गई। शाहजहाँ के पुत्र दारा शिकोह ने भी रामायण का फारसी में स्वयं अनुवाद किया था।

 विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायण, इंडोनेशिया की कबिन रामायण, जावा का सेरतराम,सैरीराम,पातानी रामकथा, इण्डो चायना की रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैर रामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतोकी रामयान, थाईलैंड की रामकियेन आदि रामचरित्र का व्यापक बखान करती है। इसके अलावा विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप से विभिन्न देशों में विभिन्न कवियों / लेखकों द्वारा राम के अतिरिक्त किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धा से वर्णन नही किया गया। तात्पर्य यह कि श्रीराम का प्रभाव भारत में ही नहीं अपितु विश्व भर में व्याप्त है।(क्रमशः)

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