Wednesday, 28 April 2021

कोहराम न मचाओ



इतना कोहराम न मचाओ कि जिंदगी परेशान हो जाये।
तुम्हारी अफवाह में कहीं व्यवस्था बदनाम न हो जाये।।

जाओ  गुपचुप चमन का हाल देख आओ।
कोई लम्हा रोर से तुम्हारे परेशान न हो जाये।।

अपनी नासमझी मीडिया को जिन्न न बनाओ।
बद्दुआओं से तुम्हारी मसीहाई गुमनाम न हो जाए।।

वैसे भी सिर्फ धुंध बनना ही फितरत है तुम्हारी।
यह मौसमी निकम्मापन कहीं आम न हो जाए।।

सम्हल लो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, दिलजलो।
पूंछ घुमाते ही तुम्हारी लंका श्मशान न  हो जाए।।

 किश्ती को डुबोने खाई है कसम पीढ़ियों से ।
उसकी पतवार  कहीं अब  हैवान न हो जाये।।

- उमेश कुमार सिंह
28/4/21

15 comments:

  1. सामयिक और आज के माहौल पर सटीक सर

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  2. समसामयिक और मानवीय संवेदना से परिपूर्ण

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  3. बहुत सुन्दर कविता

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  4. प्रासंगिक और सटीक प्रतीकों से उत्कृष्ट सृजन

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना|

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  6. क्या बात आदरणीय?
    क्या शब्द?
    क्या भाषा?
    क्या अभिव्यक्ति?
    एक पंक्ति और..
    इन्हीं निकम्मों ने ही तो लगाई हैं आग चमन में।
    इनकी भूलें सुधारने मनुष्यता दे रही आहुतियाँ..।।

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    1. आप स्वस्थ रहें,यही हमारी प्रसन्नता है

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  7. इतना कोहराम न मचाओ..सादर जय श्री राम भैया जी बहुत सुंदर रचना है।

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  8. बहुत ही मार्मिक पक्तियान, सरजी

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  9. 🙏🙏 समसामयिक माननीय दुर्गुणों को दर्शाती

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  10. आज की स्थिति को चरितार्थ करती कविता ।...उम्दा चिंतन ..👍💐

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  11. बहुत ही सुंदर और सटीक रचना महोदय

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  12. सुंदर अभिव्यक्ति है। अफवाह उड़ाने वाले न तो थक रहे हैं और न ही अपनी अंतरात्मा को टटोल रहे हैं। टटोलें भी तो कैसे, अंतरात्मा बची ही नहीं है।

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