इतना कोहराम न मचाओ कि जिंदगी परेशान हो जाये।
तुम्हारी अफवाह में कहीं व्यवस्था बदनाम न हो जाये।।
जाओ गुपचुप चमन का हाल देख आओ।
कोई लम्हा रोर से तुम्हारे परेशान न हो जाये।।
अपनी नासमझी मीडिया को जिन्न न बनाओ।
बद्दुआओं से तुम्हारी मसीहाई गुमनाम न हो जाए।।
वैसे भी सिर्फ धुंध बनना ही फितरत है तुम्हारी।
यह मौसमी निकम्मापन कहीं आम न हो जाए।।
सम्हल लो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, दिलजलो।
पूंछ घुमाते ही तुम्हारी लंका श्मशान न हो जाए।।
किश्ती को डुबोने खाई है कसम पीढ़ियों से ।
उसकी पतवार कहीं अब हैवान न हो जाये।।
- उमेश कुमार सिंह
28/4/21
सामयिक और आज के माहौल पर सटीक सर
ReplyDeleteसमसामयिक और मानवीय संवेदना से परिपूर्ण
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteप्रासंगिक और सटीक प्रतीकों से उत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना|
ReplyDeleteक्या बात आदरणीय?
ReplyDeleteक्या शब्द?
क्या भाषा?
क्या अभिव्यक्ति?
एक पंक्ति और..
इन्हीं निकम्मों ने ही तो लगाई हैं आग चमन में।
इनकी भूलें सुधारने मनुष्यता दे रही आहुतियाँ..।।
आप स्वस्थ रहें,यही हमारी प्रसन्नता है
Deleteइतना कोहराम न मचाओ..सादर जय श्री राम भैया जी बहुत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक पक्तियान, सरजी
ReplyDelete🙏🙏 समसामयिक माननीय दुर्गुणों को दर्शाती
ReplyDeleteबहुत सही
ReplyDeleteआज की स्थिति को चरितार्थ करती कविता ।...उम्दा चिंतन ..👍💐
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सटीक रचना महोदय
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति है। अफवाह उड़ाने वाले न तो थक रहे हैं और न ही अपनी अंतरात्मा को टटोल रहे हैं। टटोलें भी तो कैसे, अंतरात्मा बची ही नहीं है।
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