पुरखों की पावन स्मृति और सर्जनाकर्म। वीणा की सम्पादकीय चिंता।
पहली चिंता - बड़ी रेखा ने खींचकर छोटी रेखा मिटाने की है।
दूसरी चिंता - स्मरण करने के तरीके की है।
तीसरी चिंता - हैं को थे में बदल जाने की है।
चौथी चिंता- वादों, विचारधाराओं और मिथ्या प्रचारों का धुआं और धुंध।
सम्पादकीय में समाधान देने का प्रयास कुछ अपेक्षाओं के रूप में आया है।
इसे आपकी टिप्पणी के लिए साझा कर रहा हूं। आपके विचार मिलने के बाद उनका उल्लेख कर वीणा को अवगत कराऊंगा।
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