Friday, 29 May 2020

वोकल फार लोकल

आपके आलेख पर- प्रधानमंत्री ने  ‘आत्मनिर्भरता’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ का संदेश दे दिया |

सामाजिक सरोकारों से जुड़े पत्रकार,लेखक, बुद्धि जीवियों ने अपने मत देना प्रारंभ किया-

 1. हम बहुत सा आयात और कई जरूरी चीजें अनेक देशों से करते हैं !
(ठीक है किंतु यह आयात हम रातों-रात बंद नहीं कर रहे हैं)

2.  चीन पर हमारी निर्भरता १४ प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही है | दवाई उद्योग, मोटर गाड़ी के कल-पुर्जे, बिजली के उपकरण, सौर ऊर्जा उद्योग और खिलौना उद्योग के लिए हम चीन पर ही निर्भर है। रसायन व उर्वरक मंत्रालय के अनुसार, भारत दवा के लिए जितना कच्चा माल यानी एपीआई दूसरे देशों से मंगवाता है, उसका दो-तिहाई चीन से आता है। इसके अलावा, हम करीब ६० प्रतिशत चिकित्सा उपकरण चीन से आयात करते हैं। मोबाइल उद्योग में इस्तेमाल होने वाले ८८ प्रतिशत कल-पुर्जे भी चीन जैसे देशों से आते हैं।
(अभी के दो उदाहरण- कोरोना की सामान्य दबाई पर भारत ने सफलता पाई। ठीक है कच्चे माल का विकल्प भी तलाश करना होगा।
* दूसरा मोबाइल निर्माण पर हमारी भारतीय कम्पनियां नोएडा में बड़ी मात्रा में उत्पादन कर रही हैं-सूचना प्रसारण मंत्री का दो दिन पूर्व का साक्षात्कार) इसी संदर्भ में अन्य उत्पादों पर आत्मनिर्भरता के प्रयास को समझा जा सकता है।

3. रत्न और आभूषण, भारी मशीनें, प्लास्टिक, वनस्पति तेल जैसे उत्पादों के लिए हम क्रमश: संयुक्त अरब अमीरात, जापान, दक्षिण कोरिया और मलेशिया पर निर्भर हैं।

* चुनोतियां-
 ‘आत्मनिर्भरता’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ की राह में चुनौतियां कौन सी  हैं।

* क्या हमारे पास आयातित उत्पादों का देशज विकल्प है ? 

* अर्थात्  हमें अपने संसाधन खर्च कर , जहां उत्पादकता कम हैै वहां उत्पादन बढ़ाना होगा ।

*  गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने वाले क्षेत्रों को अधिक संसाधन मुहैया कराना होगा।

* एक तर्क यह भी है कि विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी १९८५  तक घटकर ०.४५ प्रतिशत रह गई, जो १९५०  में २.२ प्रतिशत थी। आजादी के बाद के तीन दशकों में जीडीपी विकास दर महज ३.५ प्रतिशत थी। ऐसे में, उन्हीं नीतियों की ओर लौटने से कोरोना-प्रभावित अर्थव्यवस्था और बिगड़ सकती है। 

* इसलिए दवाई, इलेक्ट्रॉनिक या मोटर वाहन से जुड़े जरूरी घटकों का आयात जारी रखना उचित होगा। हमें तब तक वैश्विक आपूर्ति श्रुंखला का हिस्सा बने रहना चाहिए, जब तक कि ये हमारी उत्पादकता में इजाफा करते हैं। 

* अभी हमें अलग-अलग देशों से आयात करना चाहिए, ताकि किसी एक देश से मुश्किल होने पर आपूर्ति बाधित न हो।  

* एक और बड़ी चुनौती सीमा और गैर-सीमा शुल्क से जुड़ी है। अधिकारिक सूत्रों की बात माने तो आने वाले समय में सरकार निर्यातकों को अधिक लाभ देकर विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देगी और गैर-सीमा शुल्क लगाकर आयात को हतोत्साहित करेगी। आयात पर सीमा और गैर-सीमा शुल्क जैसी रुकावटें पैदा करने से हालात बिगड़ सकते हैं, क्योंकि अन्य देश भी हम पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकते हैं। अमेरिका-भारत का कारोबारी रिश्ता इसका ज्वलंत उदाहरण है। 

* ऐसे में, आयातित उत्पादों पर ऐसी कोई बाधा अन्य देशों में भारतीय उत्पादों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कदम चीन के साथ भी हमारी मुश्किलें बढ़ा सकता है।

* एक और चुनौती ब्रांड के मोर्चे पर भी  है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के वैश्विक ब्रांड पहले स्थानीय ब्रांड थे। मगर भारतीय ब्रांड के वैश्विक होने की राह में मुश्किल यह है कि गुणवत्ता के मामले में दुनिया आज भी हमारे उत्पादों पर भरोसा नहीं करती।

* इनोवेशन यानी नवाचार के मामले में भी हम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। यह कमी तभी पूरी हो सकती है, जब हम विश्व अर्थव्यवस्था के साथ कदम बढ़ाएंगे। 

* भारत सरकार चीन से  आपूर्ति श्रंखलाओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है, खासकर अमेरिकी कंपनियों को। यह आसान नहीं होगा, क्योंकि आर्थिक ताकतें उनकी घर वापसी चाहती हैं। 

* लॉजिस्टिक सेवाओं, ऋण सुविधा और विनियामक माहौल बनाने से जुड़े बुनियादी ढांचे भी हमें बनाने होंगे, तभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उत्पादन के लिए आकर्षित किया जा सकेगा और भारतीय ब्रांडों को वैश्विक मंच मिलेगा। 

* जाहिर है, इसके लिए काफी काम किए जाने की जरूरत है। ध्यान यह भी रखना है कि प्रधानमंत्री जी ने देश का ध्यान इस ओर खींचा है।
इसको आगे बढ़ाने का काम उद्यौगिक क्षेत्र से जुड़े  छोटे-बड़े लोगों को सोचना है।
*दूसरा भारत दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, उसे अपने उत्पादों के उपयोग पर मानस तैयार करना है।

* तीसरा यह विकल्प है किंतु भविष्य भी है और रिमोट से लाक डाउन की तरह या दबाई दुकान दारों की तरह ताला बंदी नहीं है। यह दीर्घकालिक है।

No comments:

Post a Comment