Friday, 29 May 2020

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का पत्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 30 मई को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा करने पर राष्ट्र के नाम खुला पत्र:

मेरे प्रिय स्नेहीजन,
आज से एक साल पहले भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ा। देश में दशकों बाद पूर्ण बहुमत की किसी सरकार को लगातार दूसरी बार जनता ने ज़िम्मेदारी सौंपी थी। इस अध्याय को रचने में आपकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में आज का यह दिन मेरे लिए, अवसर है आपको नमन करने का, भारत और भारतीय लोकतन्त्र के प्रति आपकी इस निष्ठा को प्रणाम करने का। यदि सामान्य स्थिति होती तो मुझे आपके बीच आकर आपके दर्शन का सौभाग्य मिलता। लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से जो परिस्थितियां बनी हैं, उन परिस्थितियों में, मैं इस पत्र के द्वारा आपके चरणों में प्रणाम करने और आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। 
बीते वर्ष में आपके स्नेह, शुभाषीश और आपके सक्रिय सहयोग ने मुझे निरंतर एक नई ऊर्जा, नई प्रेरणा दी है। इस दौरान आपने लोकतंत्र की जिस सामूहिक शक्ति के दर्शन कराए वह आज पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन चुकी है। वर्ष 2014 में आपने, देश की जनता ने, देश में एक बड़े परिवर्तन के लिए वोट किया था, देश की नीति और रीति बदलने के लिए वोट किया था। उन पांच वर्षों में देश ने व्यवस्थाओं को जड़ता और भ्रष्टाचार के दलदल से बाहर निकलते हुए देखा है। उन पांच वर्षों में देश ने अंत्योदय की भावना के साथ गरीबों का जीवन आसान बनाने के लिए गवर्नेंस को परिवर्तित होते देखा है। 
उस कार्यकाल में जहां विश्व में भारत की आन-बान-शान बढ़ी, वहीं हमने गरीबों के बैंक खाते खोलकर, उन्हें मुफ्त गैस कनेक्शन देकर, मुफ्त बिजली कनेक्शन देकर, शौचालय बनवाकर, घर बनवाकर, गरीब की गरिमा भी बढ़ाई। उस कार्यकाल में जहां सर्जिकल स्ट्राइक हुई, एयर स्ट्राइक हुई, वहीं हमने वन रैंक वन पेंशन, वन नेशन वन टैक्स- GST, किसानों की MSP की बरसों पुरानी मांगों को भी पूरा करने का काम किया। वह कार्यकाल देश की अनेकों आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समर्पित रहा। 
वर्ष 2019 में आपका आशीर्वाद, देश की जनता का आशीर्वाद, देश के बड़े सपनों के लिए था, आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए था। और इस एक साल में लिए गए फैसले इन्हीं बड़े सपनों की उड़ान है। आज जन-जन से जुड़ी जन मन की जनशक्ति, राष्ट्रशक्ति की चेतना को प्रज्वलित कर रही है। गत एक वर्ष में देश ने सतत नए स्वप्न देखे, नए संकल्प लिए, और इन संकल्पों को सिद्ध करने के लिए निरंतर निर्णय लेकर कदम भी बढ़ाए। भारत की इस ऐतिहासिक यात्रा में देश के हर समाज, हर वर्ग और हर व्यक्ति ने बखूबी अपना दायित्व निभाया है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ इस मंत्र को लेकर आज देश सामाजिक हो या आर्थिक, वैश्विक हो या आंतरिक, हर दिशा में आगे बढ़ रहा है।
बीते एक वर्ष में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय ज्यादा चर्चा में रहे और इस वजह से इन उपलब्धियों का स्मृति में रहना भी बहुत स्वाभाविक है। राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए आर्टिकल 370 की बात हो, सदियों पुराने संघर्ष के सुखद परिणाम - राम मंदिर निर्माण की बात हो, आधुनिक समाज व्यवस्था में रुकावट बना ट्रिपल तलाक हो, या फिर भारत की करुणा का प्रतीक नागरिकता संशोधन कानून हो, ये सारी उपलब्धियां आप सभी को स्मरण हैं। एक के बाद एक हुए इन ऐतिहासिक निर्णयों के बीच अनेक फैसले, अनेक बदलाव ऐसे भी हैं जिन्होंने भारत की विकास यात्रा को नई गति दी है, नए लक्ष्य दिए हैं, लोगों की अपेक्षाओं को पूरा किया है। 
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद के गठन ने जहां सेनाओं में समन्वय को बढ़ाया है, वहीं मिशन गगनयान के लिए भी भारत ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। इस दौरान गरीबों को, किसानों को, महिलाओं-युवाओं को सशक्त करना हमारी प्राथमिकता रही है। अब पीएम किसान सम्मान निधि के दायरे में देश का प्रत्येक किसान आ चुका है। बीते एक वर्ष में इस योजना के तहत 9 करोड़ 50 लाख से ज्यादा किसानों के खातों में 72 हजार करोड़ रुपए से अधिक राशि जमा कराई गई है। देश के 15 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में पीने का शुद्ध पानी पाइप से मिले, इसके लिए जल जीवन मिशन शुरु किया गया है। हमारे 50 करोड़ से अधिक के पशुधन के बेहतर स्वास्थ्य के लिए मुफ्त टीकाकरण का बहुत बड़ा अभियान भी चलाया जा रहा है। 
देश के इतिहास में यह भी पहली बार हुआ है जब, किसान, खेत मजदूर, छोटे दुकानदार और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक साथियों, सभी के लिए 60 वर्ष की आयु के बाद 3 हज़ार रुपए की नियमित मासिक पेंशन की सुविधा सुनिश्चित हुई है। मछुआरों की सहूलियत बढ़ाने के लिए, उनको मिलने वाली सुविधाएं बढ़ाने और ब्लू इकॉनॉमी को मजबूत करने के लिए विशेष योजनाओं के साथ-साथ अलग से विभाग भी बनाया गया है। इसी तरह व्यापारियों की समस्याओं के समय पर समाधान के लिए व्यापारी कल्याण बोर्ड के निर्माण का निर्णय लिया गया है। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी लगभग 7 करोड़ बहनों को भी अब ज्यादा वित्तीय सहायता दी जा रही है। हाल में ही स्वयं सहायता समूहों के लिए बिना गारंटी के ऋण को 10 लाख से बढ़ाकर दोगुना यानि 20 लाख कर दिया गया है। 
आदिवासी बच्चों की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए, देश में 450 से ज्यादा नए एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूलों के निर्माण का अभियान भी शुरू किया गया है। सामान्य जन के हित से जुड़े बेहतर कानून बनें, इसके लिए भी बीते वर्ष में तेज गति से कार्य हुआ है। हमारी संसद ने अपने कामकाज से दशकों पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इसी का परिणाम है कि चाहे कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट हो, चिटफंड कानून में संशोधन हो, दिव्यांगों, महिलाओं और बच्चों को अधिक सुरक्षा देने वाले कानून हों, ये सब तेज़ी से बन पाए हैं। सरकार की नीतियों और निर्णयों की वजह से शहरों और गांवों के बीच की खाई कम हो रही है। पहली बार ऐसा हुआ है जब गांव में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या, शहर में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से 10 प्रतिशत ज्यादा हो गई है। 
देशहित में किए गए इस तरह के ऐतिहासिक कार्यों और निर्णयों की सूची बहुत लंबी है। इस पत्र में सभी को विस्तार से बता पाना संभव नहीं। लेकिन मैं इतना अवश्य कहूंगा कि एक साल के कार्यकाल के प्रत्येक दिन चौबीसों घंटे पूरी सजगता से काम हुआ है, संवेदनशीलता से काम हुआ है, निर्णय लिए गए हैं। 
देशवासियों की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति करते हुए हम तेज गति से आगे बढ़ ही रहे थे, कि कोरोना वैश्विक महामारी ने भारत को भी घेर लिया। एक ओर जहां अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं और विशाल अर्थव्यवस्था वाली विश्व की बड़ी-बड़ी महाशक्तियां हैं, वहीं दूसरी ओर इतनी बड़ी आबादी और अनेक चुनौतियों से घिरा हमारा भारत है। कई लोगों ने आशंका जताई थी कि जब कोरोना भारत पर हमला करेगा, तो भारत पूरी दुनिया के लिए संकट बन जाएगा।
लेकिन आज सभी देशवासियों ने भारत को देखने का नजरिया बदलकर रख दिया है। आपने ये सिद्ध करके दिखाया है कि विश्व के सामर्थ्यवान और संपन्न देशों की तुलना में भी भारतवासियों का सामूहिक सामर्थ्य और क्षमता अभूतपूर्व है। ताली-थाली बजाने और दीया जलाने से लेकर भारत की सेनाओं द्वारा कोरोना वॉरियर्स का सम्मान हो, जनता कर्फ्यू या देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान नियमों का निष्ठा से पालन हो, हर अवसर पर आपने ये दिखाया है कि एक भारत ही श्रेष्ठ भारत की गारंटी है। 
निश्चित तौर पर, इतने बड़े संकट में कोई ये दावा नहीं कर सकता कि किसी को कोई तकलीफ और असुविधा न हुई हो। हमारे श्रमिक साथी, प्रवासी मजदूर भाई-बहन, छोटे-छोटे उद्योगों में काम करने वाले कारीगर, पटरी पर सामान बेचने वाले, रेहड़ी-ठेला लगाने वाले, हमारे दुकानदार भाई-बहन, लघु उद्यमी, ऐसे साथियों ने असीमित कष्ट सहा है। इनकी परेशानियां दूर करने के लिए सभी मिलकर प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमें ये भी ध्यान रखना है कि जीवन में हो रही असुविधा, जीवन पर आफत में न बदल जाए। इसके लिए प्रत्येक भारतीय के लिए प्रत्येक दिशा-निर्देश का पालन करना बहुत आवश्यक है।
जैसे अभी तक हमने धैर्य और जीवटता को बनाए रखा है, वैसे ही उसे आगे भी बनाए रखना है। यह एक बड़ा कारण है कि भारत आज अन्य देशों की तुलना में ज्यादा संभली हुई स्थिति में है। ये लड़ाई लंबी है लेकिन हम विजय पथ पर चल पड़े हैं और विजयी होना हम सबका सामूहिक संकल्प है। अभी पश्चिम बंगाल और ओडिशा में आए अम्फान चक्रवात के दौरान जिस हौसले के साथ वहां के लोगों ने स्थितियों का मुकाबला किया, चक्रवात से होने वाले नुकसान को कम किया, वह भी हम सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।
इन परिस्थितियों में, आज यह चर्चा भी बहुत व्यापक है कि भारत समेत तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं कैसे उबरेंगी? लेकिन दूसरी ओर ये विश्वास भी है कि जैसे भारत ने अपनी एकजुटता से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया को अचंभित किया है, वैसे ही आर्थिक क्षेत्र में भी हम नई मिसाल कायम करेंगे। 130 करोड़ भारतीय, अपने सामर्थ्य से आर्थिक क्षेत्र में भी विश्व को चकित ही नहीं बल्कि प्रेरित भी कर सकते हैं। आज समय की मांग है कि हमें अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा। अपने बलबूते पर चलना ही होगा और इसके लिए एक ही मार्ग है - आत्मनिर्भर भारत।
अभी हाल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए दिया गया 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज, इसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। यह अभियान, हर एक देशवासी के लिए, हमारे किसान, हमारे श्रमिक, हमारे लघु उद्यमी, हमारे स्टार्ट अप्स से जुड़े नौजवान, सभी के लिए, नए अवसरों का दौर लेकर आएगा। भारतीयों के पसीने से, परिश्रम से और उनकी प्रतिभा से बने लोकल उत्पादों के दम पर भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम करेगा और आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ेगा। 
बीते छह वर्षों की इस यात्रा में आपने निरंतर मुझ पर आशीर्वाद बनाए रखा है, अपना प्रेम बढ़ाया है। आपके आशीर्वाद की शक्ति से ही, देश पिछले एक साल में ऐतिहासिक निर्णयों और विकास की अभूतपूर्व गति के साथ आगे बढ़ा है। लेकिन फिर भी मुझे पता है कि अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। देश के सामने चुनौतियां अनेक हैं, समस्याएं अनेक हैं। मैं दिन-रात प्रयास कर रहा हूं। मुझ में कमी हो सकती है लेकिन देश में कोई कमी नहीं है। और इसलिए, मेरा विश्वास स्वयं से ज्यादा आप पर है, आपकी शक्ति, आपके सामर्थ्य पर है। मेरे संकल्प की ऊर्जा आप ही हैं, आपका समर्थन, आपका आशीर्वाद, आपका स्नेह ही है। 
वैश्विक महामारी के कारण, यह संकट की घड़ी तो है ही, लेकिन हम देशवासियों के लिए यह संकल्प की घड़ी भी है। हमें यह हमेशा याद रखना है कि 130 करोड़ भारतीयों का वर्तमान और भविष्य कोई आपदा या कोई विपत्ति तय नहीं कर सकती। हम अपना वर्तमान भी खुद तय करेंगे और अपना भविष्य भी। हम आगे बढ़ेंगे, हम प्रगति पथ पर दौड़ेंगे, हम विजयी होंगे। 
हमारे यहां कहा गया है- ‘कृतम् मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहितः’॥
यानि, हमारे एक हाथ में कर्म और कर्तव्य है तो दूसरे हाथ में सफलता सुनिश्चित है।
देश की निरंतर सफलता की इसी कामना के साथ मैं आपको पुन: नमन करता हूं।
आपको और आपके परिवार को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
स्वस्थ रहिए, सुरक्षित रहिए !!!
जागृत रहिए, जागरूक रखिए !!!
आपका प्रधानसेवक
नरेंद्र मोदी

वोकल फार लोकल

आपके आलेख पर- प्रधानमंत्री ने  ‘आत्मनिर्भरता’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ का संदेश दे दिया |

सामाजिक सरोकारों से जुड़े पत्रकार,लेखक, बुद्धि जीवियों ने अपने मत देना प्रारंभ किया-

 1. हम बहुत सा आयात और कई जरूरी चीजें अनेक देशों से करते हैं !
(ठीक है किंतु यह आयात हम रातों-रात बंद नहीं कर रहे हैं)

2.  चीन पर हमारी निर्भरता १४ प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही है | दवाई उद्योग, मोटर गाड़ी के कल-पुर्जे, बिजली के उपकरण, सौर ऊर्जा उद्योग और खिलौना उद्योग के लिए हम चीन पर ही निर्भर है। रसायन व उर्वरक मंत्रालय के अनुसार, भारत दवा के लिए जितना कच्चा माल यानी एपीआई दूसरे देशों से मंगवाता है, उसका दो-तिहाई चीन से आता है। इसके अलावा, हम करीब ६० प्रतिशत चिकित्सा उपकरण चीन से आयात करते हैं। मोबाइल उद्योग में इस्तेमाल होने वाले ८८ प्रतिशत कल-पुर्जे भी चीन जैसे देशों से आते हैं।
(अभी के दो उदाहरण- कोरोना की सामान्य दबाई पर भारत ने सफलता पाई। ठीक है कच्चे माल का विकल्प भी तलाश करना होगा।
* दूसरा मोबाइल निर्माण पर हमारी भारतीय कम्पनियां नोएडा में बड़ी मात्रा में उत्पादन कर रही हैं-सूचना प्रसारण मंत्री का दो दिन पूर्व का साक्षात्कार) इसी संदर्भ में अन्य उत्पादों पर आत्मनिर्भरता के प्रयास को समझा जा सकता है।

3. रत्न और आभूषण, भारी मशीनें, प्लास्टिक, वनस्पति तेल जैसे उत्पादों के लिए हम क्रमश: संयुक्त अरब अमीरात, जापान, दक्षिण कोरिया और मलेशिया पर निर्भर हैं।

* चुनोतियां-
 ‘आत्मनिर्भरता’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ की राह में चुनौतियां कौन सी  हैं।

* क्या हमारे पास आयातित उत्पादों का देशज विकल्प है ? 

* अर्थात्  हमें अपने संसाधन खर्च कर , जहां उत्पादकता कम हैै वहां उत्पादन बढ़ाना होगा ।

*  गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने वाले क्षेत्रों को अधिक संसाधन मुहैया कराना होगा।

* एक तर्क यह भी है कि विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी १९८५  तक घटकर ०.४५ प्रतिशत रह गई, जो १९५०  में २.२ प्रतिशत थी। आजादी के बाद के तीन दशकों में जीडीपी विकास दर महज ३.५ प्रतिशत थी। ऐसे में, उन्हीं नीतियों की ओर लौटने से कोरोना-प्रभावित अर्थव्यवस्था और बिगड़ सकती है। 

* इसलिए दवाई, इलेक्ट्रॉनिक या मोटर वाहन से जुड़े जरूरी घटकों का आयात जारी रखना उचित होगा। हमें तब तक वैश्विक आपूर्ति श्रुंखला का हिस्सा बने रहना चाहिए, जब तक कि ये हमारी उत्पादकता में इजाफा करते हैं। 

* अभी हमें अलग-अलग देशों से आयात करना चाहिए, ताकि किसी एक देश से मुश्किल होने पर आपूर्ति बाधित न हो।  

* एक और बड़ी चुनौती सीमा और गैर-सीमा शुल्क से जुड़ी है। अधिकारिक सूत्रों की बात माने तो आने वाले समय में सरकार निर्यातकों को अधिक लाभ देकर विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देगी और गैर-सीमा शुल्क लगाकर आयात को हतोत्साहित करेगी। आयात पर सीमा और गैर-सीमा शुल्क जैसी रुकावटें पैदा करने से हालात बिगड़ सकते हैं, क्योंकि अन्य देश भी हम पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकते हैं। अमेरिका-भारत का कारोबारी रिश्ता इसका ज्वलंत उदाहरण है। 

* ऐसे में, आयातित उत्पादों पर ऐसी कोई बाधा अन्य देशों में भारतीय उत्पादों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कदम चीन के साथ भी हमारी मुश्किलें बढ़ा सकता है।

* एक और चुनौती ब्रांड के मोर्चे पर भी  है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के वैश्विक ब्रांड पहले स्थानीय ब्रांड थे। मगर भारतीय ब्रांड के वैश्विक होने की राह में मुश्किल यह है कि गुणवत्ता के मामले में दुनिया आज भी हमारे उत्पादों पर भरोसा नहीं करती।

* इनोवेशन यानी नवाचार के मामले में भी हम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। यह कमी तभी पूरी हो सकती है, जब हम विश्व अर्थव्यवस्था के साथ कदम बढ़ाएंगे। 

* भारत सरकार चीन से  आपूर्ति श्रंखलाओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है, खासकर अमेरिकी कंपनियों को। यह आसान नहीं होगा, क्योंकि आर्थिक ताकतें उनकी घर वापसी चाहती हैं। 

* लॉजिस्टिक सेवाओं, ऋण सुविधा और विनियामक माहौल बनाने से जुड़े बुनियादी ढांचे भी हमें बनाने होंगे, तभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उत्पादन के लिए आकर्षित किया जा सकेगा और भारतीय ब्रांडों को वैश्विक मंच मिलेगा। 

* जाहिर है, इसके लिए काफी काम किए जाने की जरूरत है। ध्यान यह भी रखना है कि प्रधानमंत्री जी ने देश का ध्यान इस ओर खींचा है।
इसको आगे बढ़ाने का काम उद्यौगिक क्षेत्र से जुड़े  छोटे-बड़े लोगों को सोचना है।
*दूसरा भारत दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, उसे अपने उत्पादों के उपयोग पर मानस तैयार करना है।

* तीसरा यह विकल्प है किंतु भविष्य भी है और रिमोट से लाक डाउन की तरह या दबाई दुकान दारों की तरह ताला बंदी नहीं है। यह दीर्घकालिक है।

Saturday, 16 May 2020

सनातन संस्कृति और वामपंथ

(एक)

आज अपने एक मित्र की पोस्ट पर मैंने अपनी टीप दी थी ,जो इस प्रकार थी-

हमारे मित्र ने फेसबुक पर एक प्रश्न रखा है -

वामपंथी लेखन मंडली द्वारा सनातन संस्कृति के उज्ज्वल पक्ष पर कितना लेखन हुआ है, क्या आप बता सकते हैं?

जी हां।  पहले तो यह मानना होगा कि भारत में कोई वाम-दक्षिण (साहित्य) में नहीं हैं।

यदि हों भी तो  वाम हो या  दक्षिण दोनों जयंत हैं। 

इसलिए सनातन पर न समग्रता में वाम लिख सकता न दक्षिण। दूसरा सनातन संस्कृति में उज्ज्वल पक्ष ही होता है। इसीलिए वह नित्य नूतन चिर पुरातन होती  है।

सनातन पर या तो  सूरदास लिख सकता है या त्रिनेत्रधारी।

मानवता की मांग है कि वाम और दक्षिण मिलकर तीसरे नेत्र राष्ट्रपंथी को प्राप्त करें। बिना तीसरे नेत्र के सनातन पर कौन लिख सकता है?

पर त्रिनेत्रधारी की शर्त हलाहल पान है।

..................
(दो)

जिस पर दो टिप्पणियों  पर हमने पुनः स्पष्टता के लिए विचार रखा जो इस प्रकार है-

 दो बातें ध्यान में रखना चाहिए।एक १९२५  से १९८० के दसक का वामपंथ , कम्युनिस्ट, नक्सलवाद। दूसरा उसके बाद का।

जब मैं वामपंथ कहता हूं तो उसमें (भविष्य का राष्ट्र पंथी) देखता हूं। 

उनमें भी तीन प्रकार के हैं-

एक दक्षिण पंथ विरोधी। 
दूसरे-  जिज्ञासु वामपंथी। 
तीसरे- कट्टर ,लगभग नक्सली मानसिकता के (लेखक)।

इनकी उदात्तता जैसे-जैसे बढ़ती है,  वे श्रेणियां बदलती जाती हैं।

जो दक्षिण पंथ से मतभेद रखता है ,वह बहुत जल्दी तटस्थ और आगे राष्ट्र पंथी बनता जाता है।
शेष संघर्ष के दौर से नर्मदा के पत्थर की तरह घिसते रहते हैं।

केरल, पश्चिम बंगाल में होती हत्याएं इनके उदाहरण हैं। वहां पूर्व वामपंथियो की हत्याएं ज्यादा होती हैं।

यह प्रक्रिया धीमी अवश्य दिखती है किंतु भविष्य के बीस-पच्चीस सालों में काफी परिवर्तित दिखेगी।

सनातन संस्कृति को अंग्रेजी की शब्दावली ने किनारे करने की स्थिति पैदा की है।

दोष दक्षिण पंथियों का भी है उन्होंने अपने-अपने कारणों से एक लक्ष्मण रेखा खींच दी।

मैं व्यक्तिगत रूप से अनेक लोगों को जानता हूं जो या तो तटस्थ हैं या प्रो सनातनी किन्तु उन पर वामपंथ का लेवल इसलिए भी लगा दिया की उसकी प्रतिभा हमें पीछे न ढकेल दे।

 त्रिनेत्र का लेखन दो अर्थों में बहुत महत्त्वपूर्ण है,जो सम्भव भी है।

* एक-व्यक्ति से मतभेद हो, मनभेद नहीं।

* दूसरा-दूसरे को दोष देना बंद हो और मैं ही राष्ट्र,सनातन संस्कृति का ठेकेदार हूं, व्यवहार में प्रकट न हो।

मनुष्य तीन तल्लों में जीने वाला ईश्वर का वरदान है-
* एक-चेतन अवस्था।
* दूसरा-अर्धचेतन ।
*  तीसरा-अचेतन।

मित्र साहित्यकार किस तल्लेपर निवास करता है, यह उसके ऊपर है।

तीसरा तल्ला ही सनातन संस्कृति का बोध करता है। पहले में संघर्ष, दूसरे में तटस्थ और तीसरे में स्वस्थ की अवस्था प्राप्त होती हैं।

 यहीं से अजातशत्रु रचनाकार की कालजयी यात्रा प्रारंभ होती है।

Sunday, 3 May 2020

ओ मेरे चित्रकार


ओ मेरे चित्रकार

ॐकार 
क्या मैं तुम्हारा दुर्लभ अमोघ अगम्य
बुद्धि-तीक्ष्णता, निर्मलता, विपुलता से भरा
मौन पा सकता हूं ?
 
ठहरो !
मैं जानता हूं तुम्हारे परा-तूलिका का कोई रंग नहीं,
वैसे ही जैसे पंक-कीच, फिसलन, दुर्गन्ध, काई-सेवर से दूर पम्पासर का श्यामाभ जल,
जिसे होना चाहिए था पंकलित उल्लसित अंतःउत्तेजित कामेक्षा-शोकदंशित विवशता से भरा, 
अशोक-तरु का चटक कुसुम्भी प्रगाढ़ दांपत्य प्रेम,

किन्तु तुम चाहते हो जहां जब जैसा वही रंग दिखता है
जानना चाहता हूं यह रंग मेरी आंखों का श्याम-श्वेत-रतनार है 
या तुम्हारे ‘अ’-कार चरणयुगुल का पवित्र पीत अनुराग लालिमा-मिश्रण   ।

मेरे दृश्यभू
क्या तुम्हारी प्रज्ञाचक्षु उस असीम आकाश को भेद कर
देख रहीं हैं हिमालयी अकामना तरल वारि को ,   
जहां उड़ नहीं सकते हमारे ईर्ष्या वैभव अय्याशी के विमान
वहां से केवल और केवल उड़ कर वापस आ सकता है
‘प्रणव’ का पञ्च-प्राण-पखेरू, मेरा घुमंतू परिंदा
जो उद्यत है मुक्ति मोक्ष कैवल्य-हुतासन ले ‘इदं इन्द्राय इदं न मम’ हेतु,
दिख रहे हैं उसे तुम्हारे ‘उ-कार’ के उपकार उदर विशाल देश के आकाश और प्रकाश  मिश्रण। 

हे ब्रह्मविदु
संभवतः पंचभूती अपवित्र हाथों की मलिन छाया ने  
तुम्हारे ‘अवानस्पतिक’ को स्पर्श कर दिया होगा, या
दूसरे की रक्त कोशिकाओं को रोक लिया होगा अपने ही क्षेत्र में
जिसने बाधित किया होगा महामौनी सिद्ध मतंग आश्रम को
संवेदना और सहृदयता की सबरी में न आई होगी मिठास
अत: सावधान हूँ झंझावात में गंतव्य-यात्रा अधूरी न रह जाए
'
ये पुरुषे वेदि ब्रह्म। ते वेदि ब्रह्मस्वरूप'
जीवन, प्रकाश-अस्मिता के चरम स्रोत का कर सके संधान
इसलिये चाहता हूं प्रवेेश उसमें जो है 'म’-कार महामंडल मिश्रण ।

प्रो. उमेश कुमार सिंह
03/05/2020


Saturday, 2 May 2020

सपने तो सपने होता हैं

एक दृश्य


मैंने एक सपना देखा, एक छोटा मंत्रिमंडल। तीस लोगों को विभाग बांट दिए गए। मंत्रियों ने प्रभार लिया । काम शुरू किया। फिर -

सलाहकार बुलाये गये। पूरे विभाग पर मैराथन चर्चा हुई। बौने-गिद्ध-दृष्टि प्राप्त सत्ताजयी सलाहकारों के द्वारा बडे-बाबू का पूरा व्यक्तित्व और कृतित्व पन्ने-दर-पन्ने साहब के सामने पलट कर रखा गया।

एक- साहब अकड़ू है। साहब इन-उन मंत्रियों के साथ उठते बैठते हैं। पुरानी सरकार में मलाईदार विभाग में थे। अंग्रेजी बहुत बोलते हैं। इतने शहर और प्रांत में, विदेश में इनकी इतनी सम्पत्ति है।

दूसरा- किस जाति के हैं। किस वर्ग के हैं। किस सम्प्रदाय के हैं। केन्द्र में इनका किससे सम्बंध है। आकाओं के तो ख़ास नहीं है।

तीसरा- क्या मुखिया के खास हैं ? क्या अपने से अधिक मुखिया की ज्यादा सुनेंगे ? फ़ाइल कितने दिन में लौटाते हैं। फाइल में नकारात्मक / सकारात्मक टिप्पणी कितनी देते हैं?

ऐसी अनेक पक्षों की चर्चा के बाद अनुभवी विशेष सहायकवि.क.आ.निज सहायक, लिपिक, आवक-जावक की तलाश प्रारंभ हुई। 

कुछ तो रिश्तेदारों से ही रखने का विचार तय हुआ। मसलन टाइपिस्ट पत्नी, बाडीगाड छोटाभाई आदि- आदि  

पत्नी झल्लाई मैं तुम्हारी टाइपिस्ट ? क्या इसी के लिए इतनी जगरता की थी । किसी तरह यह सांत्वना देकर शांत कराया गया की 'आप को टाइप थोड़े ही करना है, वह तो बाबू ही करेगा । आप के खाते में तो वेतन जायेगा  ! 

फिर बंगला आवंटन कराने, किस-किस बंगले में रह कर किसे कितनी लब्धियां मिली की पड़ताल।

आभार हेतु फूलों की तिलांजलि के साथ मंहगी मिठाइयों, अलंकारों की व्यवस्था तो पहले ही भावी पदाकांक्षियों ने कर दी।

फिर एक- कुर्ता-पायजामां, वस्त्रालंकार की व्यवस्था। 

दो- लैपटाप, सबसे बड़ी स्क्रीनवाली टीवी, चाय-जूश मशीन, वासिंग-मशीन, कम्प्यूटर, रसोई गैस, मंहगा आधुनिक चूल्हा, रंगीन पर्दे विभाग से बिना डिमांड के कैसे आये की चिंता के लिए व्यक्ति का चयन।

 ( स्मरण रहे साहब वनवास में थे । घर, पर्दा, कालीन आदि-आदि से वंचित कुछ-कुछ आज के क्रीमीलेयर के दलितों के समान)!!

 पुराने पदाधिकारियों में से कुछका बायोडाटा मिल ही गया जो हर सरकार में हर मंत्री का घरेलू कर्मी बनने की योग्यता रखता है। बड़ी बारीकी से उसने अपनी विशेषताएं बताई कि किन-किन बातों को आप चिंता न करते हुए जनता की सेवा कर सकेंगे-

 
एयर फेयर की चिंता नहीं करनी है। रेलवे में आपके साथ आने-जाने वालों की डबल टिकिट व्यवस्था रहेगी। ( यह डबल टिकिट व्यवस्था क्या है ? क्षेत्र के संभाग-जिले के अधिकारियों को यह निर्देश रहेगा कि वह आपके साथ आनेवालों की भोजन और ट्रेन टिकट की नगद व्यवस्था करेगा। यह समर्पण निधि खाते में रखी जाएगी और इसी आधार पर फील्ड के अधिकारी कृपा पा सकेंगे।) 

 वाहन व्यवस्था सामान्यरूप से तीन स्तरीय होगी। एक विभाग का, एक पूल कोटे का और एक क्षेत्र में परिवार के लिए निगम-मंडलों से, इसके अतिरिक्त एक पायलट वाहन के रूप में स्थानीय अधिकारियों द्वारा । दो वाहन अतिथि के आने-जाने आस-पास के स्थलों के दर्शन-पर्यटन के लिए विभिन्न प्रकार के माफियों द्वारा । 

एक निज सहायक जो पुराना पदत्राण-प्रूफ ( माफ़ करेंगें लतखोर ) होगा वह खान-पान की व्यवस्था, काम से बंगले में आने वाले, काम के इच्छुक अभ्यार्थियों, फाईल लाने वाले अधिकारियों से नित्य संपर्क करेगा। 

फिर विधानसभा क्षेत्र से आने-जाने वालों के स्वागत और देख- रेख के लिए एक सलाहकार-नौकर टाइप का रखा गया । 

आखिर यह सब करते छह माह बीत गये। अगले विस्तार की चिंता सताने लगी की तभी पत्नी ने झगझोरते हुए कहा उठो देखो अपने पुराने मंत्री जी पूजा पाठ में लग गए हैं । (ध्यान रहे ये पुराने मंत्री जी भी इसी दल के थे किन्तु  चतुर न होने से इस बार मंत्री पद नहीं प्राप्त कर सके ।) अभी मेहनत- मजदूरी करने चले जायेगें । नेता हो तो ऐसा जो सत्ता में रहे तो खेती करैं, अब नहीं है तो भी । 

आप ही हैं जो भष्ट मंत्रियों की तरह दिन में भी सपने देखते हो ।

04/05/2020
भोपाल