नमामि देवि
नर्मदे
माँ नर्मदा
प्रसंग
(एक)
ॐ नम: शिवा। ॐ शिवाय नम:
ॐ वाण लिंगं महाभाग संसारात् त्राहिमां प्रभो।
नास्ते चोग्ररूपाय नमस्ते व्यक्तयोनये।।
ॐ संसारकारिणे तुभ्यं नमस्ते सूक्ष्मरूप धृक।
प्रमत्ताय महेन्द्राय कालरूपाय वै नम:।।
ॐ दहनाय नमस्तुभ्यं नमस्ते योगकारिणे। भोगिनां
भोगकत्र्रे च मोक्षदात्रे नमो नम:।।
ॐ नम: कामांगनाशय नम: कल्मषहारिणे। नमो विश्वप्रदात्रे च नमो
विश्वस्वरूपिणे।।
ॐ परमात्मस्वरूपाय लिंगमूलात्काय च । सर्वेश्वराय
सर्वाय शिवाय निर्गुणाय च ।।
हर नर्मदे।
नर्मदाय नम:
अध्यात्म की चित्शक्ति जो
सर्वात्ममय शैवी छटा। अधिदैवमय कल्पांत में मुनि ने लिखी दैवी घटा।
अधिभूत में अद्भुत यही
श्री नर्मदा भू पर बहीं ।
है तीर्थजननि ! आज भी त्रैविद्य
दर्शन दे रहीं।।
इयं माहेश्वरी
गंगा महेश्वरतनुद्भवा। प्रोक्ता
दक्षिण गंगेति भारतस्य युधिष्ठिर।।
जाह्नवी वैष्णवी
गंगा ब्रह्मी गंगा सरस्वती। इयं माहेश्वरी गंगा रेवा नास्त्यत्र संशय:।। (नर्मदा माँ का स्वरूप:
युधिष्ठिर के सम्मुख महामुनि मार्कण्डेय जी)
अर्थात् हे
युधिष्ठिर! महेश्वर के दैवी शरीर से उत्पन्न होने के कारण नर्मदा को माहेश्वरी
गंगा कहते हैं। आज मध्यप्रदेश के जिस क्षेत्र से नर्मदा प्रवाहित हो रही हैं,
वह क्षेत्र इन्द्रप्रस्थ से (आधुनिक दिल्ली) से
दक्षिण में अवस्थित है, इस कारण से
महामुनि मार्कण्डेय ने नर्मदा को दक्षिण गंगा के नाम से पुकारा है। गंगा जी भगवान विष्णु के चरण-कमलों से उत्पन्न हुई हैं इसलिये वह
वैष्णवी गंगा कहलाती हैं, ब्रह्मा की पत्नी
के नामानुसार सरस्वती ब्रह्मी गंगा कहलाती हैं, वैसे ही महेश्वर के तेजोद्दीप अंग से नर्मदा जी की उत्पत्ति
हुई है इसलिये वह नि:संदेह माहेश्वरी गंगा य शंकरी गंगा कहला सकती हैं।
यथा हि पुरुषे
देवस्त्रैमूर्तित्वमुपाश्रित:। ब्रह्माविष्णुमहेशख्यं न भेदस्तत्र वै यथा।
अर्थात् जिस
प्रकार एक ही परमपुरुष परमेश्वर, तीन देवताओं की
मूर्तियों में बँट कर तीन देवता -ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर बन जाते हैं, उसी प्रकार यह बात भी याद रखनी चाहिये कि उन तीनों के स्वभावस्वरूप में उनमें
कोई आपसी भेद नहीं होता है। वैसे ही इन तीन देव नदियों में भी भेदभाव नहीं करना
चाहिये, क्योंकि ‘नद्यस्त्रिस्त्रस्त्रिदेवता:’ देव भी तीन हैं और उनके अनुग्रह से उनकी नदियाँ
भी तीन हैं, यथा सरस्वती,
गंगा और नर्मदा। इनमें नर्मदा माता की महिमा
सबसे ज्यादा है-
‘त्रिभि: सारस्वतं
पुण्यं सप्ताहेन तु यामुनम्। सद्य: पुनाति गांगेयं दर्शनादेव नर्मदा।।’
अर्थात् सरस्वती
नदी के जल में तीन दिन स्नान करने से, यमुना के जल में एक सप्ताह स्नान करने से एवं गंगा जल में तुरंत स्नान करने से,
एक आदमी पवित्र हो जाता है, परंतु नर्मदा जल में स्नान करने के पहले,
केवल दर्शन हो जाने पर ही मनुष्य फौरन पाप और
ताप से मुक्त हो जाता है।
नर्मदा माता की
दूसरी विशेषता है कि-
‘गंगा कनखले पुण्या कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामे व यदिवारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।।
अर्थात् गंगा की
पवित्रता की महिमा हरिद्वार के कंखल में अधिक अनुभूत होती है क्योंकि इस स्थल पर
दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया था, सरस्वती नदी के
किनारे विभिन्न जगहों पर वेदज्ञ ऋषियों ने यज्ञ किया था, इसके बावजूद भी कुरुक्षेत्र में, चूंकि भगवान श्री कृष्ण ने, अर्जुन को विश्वरूप दर्शन कराया था और वहीं पर एक बार
महावीर भीष्म के वाणों की बौछार से पस्त अर्जुन को, भीष्म के द्वारा निक्षिप्त ब्रह्मास्त्र से अर्थात्
साक्षात् मृत्यु से बचाने के लिये, श्री कृष्ण को
सुदर्शन चक्र धारण करना पड़ा था, जिससे उनकी भगवद्-सत्ता प्रकट हो गई थी, तो इन्हीं सब कारणों से कुरुक्षेत्र में
सरस्वती की महिमा अधिक बढ़ गई थी। परन्तु नर्मदा, चाहे वह जहाँ कहीं से भी क्यों न गुजरे-गाँव हो चाहे
जंगल-उनका जल सब जगह समान रूप से महान है-वह हर जगह पर समान रूप से पतितोद्धरिणी
हैं।
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