Saturday, 2 November 2019

M P Mhotswa,म प्रं स्थापना

स्थापना दिवस को जन्मदिवस की तरह मत मनायें-

 ०१ नवम्बर को  म.प्र., छ.ग अपने स्थापना दिवस मना रहे हैं।

कितना अच्छा होता छ.ग .आज अटल बिहारी वाजपेई जी , रविशंकर शुक्ल जी को भी याद करता।

1 नवंबर 1956, मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस। मध्य प्रदेश की स्थापना दिवस पर पूरे प्रदेश में सरकारी आयोजन किए जा रहे हैं। होना भी चाहिए। परंतु एक गहरे सिंहावलोकन के साथ।

 पिछले 63 -64 वर्षों में मध्यप्रदेश में किन क्षेत्रों में उत्कृष्ट स्थान बनाया है।

बरसात के आते ही समाचार पत्रों और मीडिया में न जाने कहां - कहां से , ग्राउंड जीरो से, खोजी पत्रकार गांव और सुदूर वनांचल से ऐसी तस्वीरें खोज कर लाते हैं जिनमें बीमार, बूढ़े, स्कूली बच्चे टायर में या रस्सी के सहारे बढ़ी हुई नदी पारकर काम में, अस्पताल में और पढ़ाई के लिए विद्यालयों में जा रहे होते हैं।

गर्मी के मौसम के साथ ही प्रदेश के जल - संसाधन के स्रोतों में सूखने का क्रम प्रारंभ हो जाता है। तलाव के गहरीकरण, कुआं, हैंड पंप, छोटे डैम बनाने की योजना प्रारंभ होती है।

सर्दी के आते ही हमें अस्पताल परिसर में पेड़ के नीचे ठिठुरते मरीजों के सहयोगी, पुल के नीचे सोते रिक्शा चालक और मजदूर सहज दिखाई पड़ जाएंगे।

सदाबहार जर्जर सड़कें, टपकते विद्यालय भवन, पंचायत भवन, महाविद्यालयों के दो कमरों के उधार किसी स्कूल के भवन, विश्वविद्यालयों के  किराए के भवन कहीं-कहीं तो परिसर में तालाब के दृश्य से भी दिखाई देते हैं।

बरसात में बिजली का मेंटेनेंस के नाम पर 6 - 8 घंटे गायब रहना, किसानों के खेत की सिंचाई के समय बिजली का बिल ना भरने के नाम पर कनेक्शन काट दिया जाना, अस्पतालों में बिजली ना होने के कारण ऑपरेशन  को टाला जाना, विज्ञान के प्रैक्टिकल न कराया जाना ऐसे सामान्य हो गया है जैसे' यह सब तो चलता है।'

स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, उद्योग के नाम पर विश्व बैंक या अन्य स्रोतों से कर्ज लेते हुए लगता है हमारे आदर्श चार्वाक ऋषि है, 'जब तक जियो उधार लेकर घी पियो। मरने के  बाद... .।"  और  (राजसत्ता बदलने के बाद पूर्व सत् ता को जिम्मेदार ठहराना।)

संभवत 56 से लेकर आज तक दल -दल की सरकारों, सरकारी तंत्र में बैठे  भाग्यशाली,  सरकारीजीवी अधिकारियों को इन समस्याओं को देखने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।

 हुआ तो ब्लैकमेलिंग के नाम पर आर टी आई एक्टिविस्ट को या मीडिया को।

 फिर भी ये साधुवाद के पात्र हैं, नहीं तो व्यापम, ई-टेंडरिंग, दवा खरीदी, पेंशन घोटाले, स्कालरशिप राशि घोटाला, कुंभ घोटाला ,सड़क- पुल-बिजली , दूध-दलिया, मिड-डे-मील , सायकल , मोबाईल, लैपटाप , शिक्षक भर्ती  घोटाले कहा से सामने आते?

योजनाएं बनाना , नीचे भेज देना पैसे की ऑडिट रिपोर्ट प्राप्त करना , दिल्ली से पुरस्कार प्राप्त करना, यह हमारे  तंत्र की विशेषता हो गई है।

वनांचल से लेकर गांव और नगर का  किसान, मजदूर गरीबी रेखा में जहां था वहीं पर ही नहीं तो दो पायदान पीछे ही चला गया है।

यह बात अलग है कि कुछ आरक्षित और अनारक्षित (किंतु परिवार, जाति से आरक्षित) नेता, अधिकारी पायदान से नहीं सीधे लिफ्ट से उच्चतम मंजिल तक पहुंच चुके हैं। उन्हें ना तो वनांचलों में रहने वाले अपने ही भाई बंधु स्मरण है और ना ही गांव के किसान , मजदूर और पुल के नीचे सोते श्रमिक या टायर और रस्सी के सहारे नदी पार करते बुजुर्ग, विद्यार्थी और बीमार “।

फिर भी समय की मांग है कि जर्जर सरकारी भवनों को भी आज के दिन 36 घंटे बिजली से ऐसा सजाया जाये  कि देखने वाले की आंखों को चुधिया दिया जाए। हमारा स्टोर कीपर अधिकारी/बाबू भी इसमें पूरे उत्साह से भाग लेता है , आखिर उसकी स्थापना भी तो इसी दिन के लिए है? इसमें न ई-टेंडर करना है न जैम में जाना है। ( हालांकि ई-टेंडर भी जांच  के दायरे में है और जैम में भी सेंध लग चुकी  है।)

इसमें एक लाभ और है सजावट में जिन उपकरणों को लाया जाता है,उसका एक दिन का  किराया सामान के मूल लागत से अधिक होता है। आखिर हमारे छोटे-बड़े कार्यालय कुंभों और बड़े सरकारी आयोजनों  में यही हुनर तो सीख कर सच्चे प्रयोगधर्मी की तरह अनुकरण करते हैं।

 फिर बाबू साहब को यह समझाने में भी सफल रहता है कि साहब "आखिर आडिट दल में सरकारी नौकर ही तो आता है। उसके चड्डी, बनियान और ट्रूथ-ब्रस घर भूल आने की आदत सुधर थोड़े गयी  है?"

हमने अगर किसी चीज को, किसी परंपरा को अनुकरण किया है तो महापुरुषों को अपनी जाति में डालना, अपने दल में डालना और आने वाली पीढ़ी के लिए बटे  हुए महापुरुषों, हुतात्माओं का आदर्श खड़ा करना।

देश की स्वतंत्रता के लिए जिन महापुरुषों ने अपनी तीन- तीन पीढ़ियां, अपने चार-चार बालक का बलिदान किया , भूमि, जन और मकान सबको ना चाहते हुए भी छोड़कर अस्मिता के लिए स्थानांतरण किया वे आज भी उपेक्षित है।

राष्ट्र यदि सनातन ऋषयों की वाणी, देवीय महापुरुषों के पराक्रम और चक्रवर्ती राजाओं के शौर्य से निर्मित होता है तो राज्य और राज तात्कालिक 5-10 पीढ़ियों के बलिदान से।

अच्छा होता प्रदेश की स्थापना को हम वर्ष भर के समाचार पत्रों और मीडिया के उन खबरों को महत्व देकर उनके निदान के लिए कोई लक्ष्य तय कर अगले स्थापना वर्ष तक पूर्ण करने का संकल्प लेते।

भ्रष्टाचार को शिष्टाचार के दायरे से बाहर करने का कुछ उद्योग करते।(निवेश आमंत्रण के नाम पर उद्योगपतियों को ९० साल के लीज पर भूमि  देने की उदारता की बात नहीं करते । उद्योगपति के तीन पीढ़ी के लिए भूमि का आवंटन!!

 आखिर सरकारें पुराने अनुभवों से क्यों नहीं सीखती की हर उद्योमी अपनी पांच साल की मुफ्त बिजली,पानी और लगान की छूट समाप्त होते ही दिवालिया होकर नये नाम से पंजीकृत हो नया उद्योगपति बना फिर मेले में मदारी बन खड़ा हो जाता है,"चल जमूरे नया करतब दिखाते हैं", हमारा अबोध वोटर तालियां पीट -पीट कर (अपना माथा पीट कर),जोश बढ़ता है।)

प्रभात फेरी, दौड़ और श्रद्धांजलियां अवश्य होनी चाहिए किंतु बिजलोत्सव  से परहेज़ के साथ।

आज समय की मांग है कि अपने पराए मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्रियों, राजनेताओं, महापुरुषों के प्रति  दलबद्धता, जातिबद्धता से ऊपर उठकर युवा के सामने एक अच्छा आदर्श उनको समान सम्मान देकर रखा जा सकता है। महात्मा गांधी, सावरकर, सरदार पटेल और इंदिरा गांधी आखिर इस देश के लिए ही तो प्राणों को उत्सर्ग किया है।

यही सच्चा महोत्सव और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सादर।

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