Friday, 20 October 2023

दरकार

दरकार जिसकी वह बात पुरानी है।
नये जमाने के तेवर  परख रहा हूं।।
ख़ुश हूं कि उनके मिजाज गरम हैं
खुली आंखों सपने समझ रहा हूं।।
शीत ने दी दस्तक जिस दुपहरी से।
आशियानों तपन ले भटक रहा हूं।।

2
साधु  
शत्रु-सैनिकों की 
कर रहे हो सेवा \
शत्रुदल !
मैं तो भगवान की सेवा कर रहा हूं
मैं तो प्राणियों की सेवा कर रहा हूं
मैं तो मानव धर्म की सेवा कर रहा हूं

असंतुष्ट था सिंकन्दर
तभी
फूस का सूखा
मरी चींटी टुकड़ा 
पकड़ा दिया सिकन्दर को
इसे हरा कर सकते हो
इसे जिन्दा कर दो

सूखी चीज हरी हो सकती है \
साधु] तुम पागल हो

सूखे को जीवन नहीं दे सकते
चीटी को जीवन नहीं दे सकते

तो 
फिर जीवित को मारने का अधिकार \

नत सिर सिकंदर 
सचमुच
भारत महान  
मेरा मन तो सैतान।

2-
 
तीर्थ है
रास्ता] घाट] जलाशय
साधना और मंत्रणा

तीर्थ है 
पवित्र] पावन
मोक्ष प्रदाता
हरता तन मन की यंत्रणा

तीर्थ है
स्थल परिक्रमा का
उपचार का
सधना का

तीर्थ है 
संज्ञा
व्यक्ति] वस्तु
स्थान और भाव रूप में
विराजित श्रद्धा लिए

तीर्थ है
विचारों का विस्तार
दण्डकों का उपचार
राम कृष्ण जहां
लेते हैं अवतार

तीर्थ है
नदी]जलाशय
मंदिर और गुरुद्वारे
जहां पीते हैं पानी
पंक्षी और पंथी प्यारे

तीर्थ है 
गुरु और उसकी वाणियां
स्नान करें उसमें 
काटे संसार बन्धन की वेणियां।



Tuesday, 10 October 2023

हिन्दुस्थान में हिंदी

"जापान में जापानी, चीन में चीनी तो हिन्दुस्थान में हिन्दी क्यों नहीं. 
इस संम्बन्ध में हमारी स्थिति -
मातृभाषा पर हमारा स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं. 
संस्कृत भाषा का स्थान क्या है ?
राष्ट्र भाषा हिन्दी हो या संस्कृत तय नहीं. 
अंग्रेजी कैसे हटेगी नीति तय नहीं. 
आइये कुछ तथ्यों को देखें -
1- नई शिक्षा नीति 2015 में संविधान की मान्यता प्राप्त 23भाषाओं को मातृभाषा का दर्जा प्राप्त हो और अनुच्छेद 350  (1)का कड़ाई से पालन कराते हुये वर्तमान व्यवस्था में पांचवी तक मातृभाषा शिक्षण का माध्यम हो. प्रयास करना पड़ेगा. 
2- संस्कृत भाषा और पाणिनी व्याकरण के आधार पर जापान और जर्मनी ने अपनी भाषा का व्याकरण बनाकर संस्कृत को कम्प्यूटर की सबसे सक्षम भाषा मानी है, अत: संस्कृत भविष्य की सबसे अधिक रोजगारोन्मुखी, वैज्ञानिक -तकनीकी शिक्षा एवं मनुष्य निर्माण की भाषा होगी. क्योकि 
एक जर्मन सर्वे के अनुसार 1998की स्थिति में संस्कृत में सबसे अधिक शब्द -102,87,50,00000 (एक सौ दो अरब सतासी करोड़,पचास लाख है. जो आगामी 20 वर्ष अर्थात् 2018 तक इसके दो गुने हो जायेंगे.
अस्तु संस्कृत भाषा का राजकीय सशक्तीकरण हो.
3. राष्ट्र भाषा संस्कृत हो एवं सरकारी राजभाषा हिन्दी हो जो संविधान में है, व्यवहार में नहीं. 
4. राष्ट्र भाषा संस्कृत और राजभाषा के राजकीय सशक्तीकरण हेतु जनजागरण तथा अंग्रेजी को सहराजभाषा से हटाने हेतु संविधान संशोधन करना होगा. 
इस कार्य के लिये योग्य व्यक्ति का उसी तरह चयन करना होगा जिस तरह पूज्य श्री गुरुजी ने एकनाथ जी का चयन किया था और उन्होंने सभी दलों के सांसदों से हस्ताक्षर कराकर गृहमंत्री लालबहादुर शास्त्री को दिया और नेहरू जी ने मुख्यमंत्री षड़मुखम् को संन्देश दे कर निर्विरोध विवेकानन्द शिला स्मारक बनवाई. 
मित्रों सरकार की इच्छा शक्ति और कुशल 

संगठन के मेधावी कार्यकर्ताओं से ही यह सम्भव होगा. और  यू एन.ओ.तथा हिन्दी सम्मेलन इसमें कारक बनेंगे. 
5- देवनागरी लिपि दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपि है, सभी भारतीय भाषाओं का लेखन देवनागरी में हो. 
भाषा समस्या समाधान और राष्ट्रीय गौरव हेतु अपने सुझावों के साथ इसे पोस्ट करें

Friday, 6 October 2023

उपनिषद् upnishad prarthana

उपनिषद् - प्रार्थना

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

(1,2)  ईशावास्योपनिषद-(1)
       बृहदारण्यकोपनिषद्(11)

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

(3,4)
केनोपनिषद् (2)
छंदोपनिषद (10)

ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ब्रह्मौपनिषदं माहं ब्रह्म निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोत् अनिराकरणमस्त्वनिराकरणं तु तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

(5,6,7)
प्रश्नोपनिषद् (4)
मुण्डकोपनिषद्(5)
माण्डूक्योपनिषद् (6)

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा: सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ 
ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

(8)
ऐतरेयोपनिषद् (7)

ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्म एधि। वेदस्य म आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीः । अनेनाधीतेनाहोरात्रान्सन्दधाम् ऋतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम् ॥ 
ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

(9)
तैत्तिरीयोपनिषद (8)

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं न इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम् । अवतु वक्तारम्  ।
ॐ शान्तिः । शान्तिः शान्तिः ।

(10,11)
श्वेताश्वतरोपनिषद्(9)
कठोपनिषद (3)

ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।
 सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै। 
ॐ शान्तिः शान्तिः ॥ शान्तिः !!!


 

Thursday, 5 October 2023

उपनिषद: सार upnishad

 

उपनिषद

सनातन वैदिक धर्म के ज्ञानकाण्ड को उपनिषद् कहते हैं । सहस्त्रों वर्ष पूर्व भारतवर्ष में जीव-जगत तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों पर गम्भीर चिन्तन के माध्यम से उनकी जो मीमांसा की गयी थी, उपनिषदों में उन्हीं का संकलन है। उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं । ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं । इनमें परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक विवेचन किया गया है । उपनिषदों में कर्मकांड को 'अवर' कहकर ज्ञान को इसलिए महत्व दिया गया कि ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है । ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाना उपनिषदों की मूल शिक्षा है । उपनिषद ही समस्त भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं, चाहे वो वेदान्त हो या सांख्य या जैन धर्म या बौद्ध धर्म । उपनिषदों को स्वयं भी वेदान्त कहा गया है । दुनिया के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे बेहतरीन ज्ञानकोश मानते हैं । उपनिषद् भारतीय सभ्यता की विश्व को अमूल्य धरोहर है । मुख्य उपनिषद 13 हैं । हरेक किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है । ये संस्कृत में लिखे गये हैं । १७वी सदी में दारा शिकोह ने अनेक उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराया ।

पाश्चात्य विद्वान और उपनिषद: सन् 1775 ई. के पहले तक किसी भी पाश्चात्य विद्वान की दृष्टि उपनिषदों पर नहीं पड़ी थी । अयोध्या के नवाब सुराजुद्दौला की राजसभा के फारसी रेजिडेंट श्री एम. गेंटिल ने सन् 1775 ई. प्रसिद्ध यात्री और जिन्दावस्ता के प्रसिद्ध आविष्कारक एंक्वेटिल डुपेर्रन को दारा शिकोह के द्वारा सम्पादित उक्त फारसी अनुवाद की एक पाण्डुलिपि भेजी । एंक्वेटिल डुपेर्रन ने कहीं से एक दुसरी पाण्डुलिपि प्राप्त की और दोनों को मिलाकर फ्रेंच तथा लैटिन भाषा में उस फारसी अनुवाद का पुन: अनुवाद किया । लैटिन अनुवाद सन् 1801-2 में ‘ओपनखत’ नाम से प्रकाशित हुआ । फ्रेंच अनुवाद नहीं छपा । बाद में प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक शेपेनहावर- सन् 1788-1860) ने गम्भीर अध्ययन पश्चात लिखा- ‘मैं समझता हूँ कि उपनिषद् के द्वारा वैदिक साहित्य के  साथ परिचय लाभ होना वर्तमान शताब्दी (सन् 1818) का सबसे अधिक परम लाभ है जो इसके पहले किन्हीं भी शताब्दियों को नहीं मिला । चौदहवीं शताब्दी के ग्रीक साहित्य के अभ्युदय में ग्रीक-साहित्य के पुनरभ्युदय से यूरोपीय साहित्य की जो उन्नति हुई थी, संस्कृत- साहित्य का प्रभाव उसकी अपेक्षा कम फल उत्पन्न करने वाला नहीं होगा।’ वे उपनिषदों  के बारे में आगे लिखते हैं- ‘जिस देश में उपनिषदों के सत्य समूह का प्रचार था, उस देश में ईसाई-धर्म का प्रचार व्यर्थ है।’ शेपेनहावर की भाविष्यवाणी सिद्ध हुई और स्वामी विवेकानन्द की शिष्या ‘सारा बुल’ ने अपने एक पत्र में लिखा कि “जर्मन  का दार्शनिक सम्प्रदाय, इग्लैण्ड के प्राच्य पण्डित और हमारे अपने देश के एरसन आदि साक्षी दे रहे हैं कि पाश्चात्य विचार आजकल सचमुच ही वेदान्त के  द्वारा अनुप्राणित हैं ।” सन् 1844 में बर्लिन में श्रीशेलिंग महोदय की उपनिषद सम्बन्धी व्याख्यानोंव्याखान को सुनकर मैक्समूलर का ध्यान सबसे पहले संस्कृत की ओर आकृष्ट हुआ । शोपेनहार लिखता है- “सम्पूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को उँचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है। उससे मेरे जीवन को शान्ति मिली है, उन्हीं से  मुझे मृत्यु में भी शान्ति मिलेगी।” शोपेनहार आगे लिखता है- ‘ये सिद्धान्त  ऐसे हैं, जो एक प्रकार से अपौरषेय ही हैं । ये जिनके मस्तिष्क की उपज हैं, उन्हें निरे मनुष्य कहना कठिन है ।  शोपेनहार के इन्हीं शब्दों के समर्थन में प्रसिद्ध पश्चिमी विद्धान मैक्स मूलर लिखता है-‘शोपेनहार के इन शब्दों के लिये यदि किसी समर्थन की आवश्यकता हो तो अपने जीवन भर के अध्ययन के आधार पर मैं उनका प्रसन्नतापूर्वक समर्थन करूँगा’

              जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान पाल डायसन ने उपनिषदों को मूल संस्कृत में अध्ययन कर अपनी टीप देते हुए अपनी पुस्तक (philosophy of the Upanisads) में लिखा-‘उपनिषद के भीतर, जो दार्शनिक कल्पना है, वह भारत में तो अद्वितीय है ही, सम्भवत: सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है’  मैक्डानल कहता है,‘मानवीय चिन्तना के इतिहास में पहले पहल वृहदारण्यक उपनिषद में ही ब्रह्म अथवा पूर्ण तत्व को प्राप्त करके उसकी यर्थाथ व्यंजना हुई है।’ फ्रांसीसी विद्वान दार्शनिक विक्टर कजिन्स् लिखते हैं,-‘जब हम पूर्व की और उनमें भी शिरोमणि स्वरूपा भारतीय साहित्यिक एवं दार्शनिक महान् कृतियों का अवलोकन करते हैं, तब  हमें  ऐसे अनेक गम्भीर सत्यों का पता चलता है, जिनकी उन निष्कर्षों से तुलना करने पर जहाँ पहुँचकर यूरोपीय प्रतिभा कभी-कभी  रुक गयी है, हमें पूर्व के तत्वज्ञान के आगे घुटना टेक देना चाहिए । जर्मनी के एक दूसरे प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक श्लेगेल लिखते हैं- ‘ पूर्वीय आदर्शवाद के प्रचुर प्रकाश पुंज की तुलना में  यूरोपवासियों का उच्चतम तत्वज्ञान ऐसा ही लगता है, जैसे मध्याह्न सूर्य के व्योमव्यापी प्रताप की पूर्ण प्रखरता में टिमटिमाती और अनल शिखा की कोई आदि किरण, जिसकी अस्थि और निस्तेज ज्योति ऐसी हो रही हो मानो अब बुझी कि  तब ।’

              उपनिषदों सार - उपनिषदों की संख्या लगभग 108 है, जिनमें से प्रायः 11 उपनिषदों को मुख्य उपनिषद् कहा जाता है । मुख्य उपनिषद, वे उपनिषद हैं, जो प्राचीनतम हैं और जिनका आदि शंकराचार्य से लेकर अन्य आचार्यों ने भाष्य किए हैं - (1) ईशावास्योपनिषद्, (2) केनोपनिषद् (3) कठोपनिषद् (4) प्रश्नोपनिषद् (5) मुण्डकोपनिषद् (6) माण्डूक्योपनिषद् (7) तैत्तरीयोपनिषद्  (8) ऐतरेयोपनिषद् (9) छान्दोग्योपनिषद्  (10) बृहदारण्यकोपनिषद्  (11) श्वेताश्वतरोपनिषद् ।आदि शंकराचार्य ने इनमें से १० उपनिषदों पर टीका लिखी थी। इनमें माण्डूक्योपनिषद सबसे छोटा और बृहदारण्यक सबसे बड़ा उपनिषद।