महात्मा गाँधी और स्वच्छता (भाग एक )
गांधी जी ने कहा था ‘स्वच्छता आजादी से अधिक महत्त्वपूर्ण है। मुझे पहले स्वच्छ भारत चाहिए बाद में आजादी।’
१९१७ में गाँधी ने कहा था, जब तक हम अपने गाँवों और शहरों को नहीं बदलते, अपनी आदतों को नहीं बदलते, बेहतर शौचालय नहीं बनाते तब तक स्वराज का कोई अर्थ नहीं।
चम्पारन से स्वच्छता का गाँधी का पहला कदम था।
एक तरफ देश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तो दूसरी ओर गाँधी साथ में स्वच्छता आन्दोलन की बात भी उतनी ही सिद्दत से कर रहे थे।
उनका मानना था कि स्वच्छता से स्वास्थ्य ठीक होगा और स्वच्छता और स्वास्थ्य दोनों से देश मजबूत होगा।
जब देश स्वच्छ नहीं होगा तब तक देश का विकास अधूरा है।
वस्तुतः विचार करें तो स्वतंत्रता से देश की मोदी सरकार के आने तक किसी भी सरकार ने स्वच्छता को उतना जोर नहीं दिया जितना गाँधी जी की इच्छा थी।
मोदी जी का यह स्वच्छता उनकी न केवल गाँधी के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि देश को समझने का परिणाम है।
स्वच्छता के लिए इस देश के कुछ नेताओं ने भी अवश्य प्रयत्न किया जिनमें, डॉ राम मनोहर लोहिया, इंदिरा गाँधी, जयराम रमेश और डॉ रघुवंश प्रसाद।
मोदी जी ने १५ आगस्त ,२०१४ को लाल किले से अभियान की घोषणा कर खुले में शौचालय से मुक्ति और हर घर में शौचालय का अभियान चलाया।
मोदी जी का मिशन हडप्पा काल की स्वच्छता से अपने को जोडऩा है।
आज स्वच्छता आन्दोलन बन गया है।
स्कूल, कालेज तथा विभिन्न सरकारी एजेन्सियाँ पोस्टर, जागरण, गोष्ठियों तथा प्रतियोगिताओं के माध्याम से जागरण कर रही हैं।
माना जाता है कि सिंगापुर के प्रधान लीक बान यून ने १९६५ में जब देश की सत्ता संभाली तो अपने प्रधानमंत्री से पूछा कि देश के विकास के लिए क्या करना चाहिए।
तब उनके प्रधान मंत्री ने चार बातें बताई थीं जिनमें दो बाते प्रधान थीं- एक: हमारे यहाँ के नागरिक सडक़ों, रास्तों में न केवल थूकते हैं बल्कि नाना प्रकार की गंदगी करते हैं, उसे बन्द किया जाना चाहिए। इसके लिये कड़ा दण्ड विधान हो।
दूसरा: सिंगापुर को उद्योगिक घरानों से मुक्त रखना चाहिए। हमें अपनी मार्कटिंग पर ज्यादा ध्यान रखना चाहिए।
प्रभाव यह हुआ कि जिस देश की प्रति व्यक्ति आय १९६४ में ४०० डालर थी, वह १९९० में १२०० डालर हुई और आज ५७००० डालर है।
तात्पर्य यह कि स्वच्छता विकास का कारगर पैमाना है। और इसे गांधी जी के अभियान से जोड़कर समझाने में मुझे कोई सकोंच नहीं.
गांधी जयन्ती के अवसर पर हमारे देश ने भी स्वच्छता का संकल्प लिया है जिसमें खेल जगत से लेकर, सिने, किसान और फौज तथा स्कूल तक जुड़ गये हैं।
सार्वजनिक स्थान स्वच्छ दिखने भी लगें हैं किन्तु हमें अभी गाँधी के स्वच्छता के दस सूत्रों को विस्मरण नहीं करना चाहिए जो न केवल भौतिक सफाई की बात का रहे हैं बल्कि पूरी मनुष्यता के उत्थान की बात कर रहे है. उस अस्पृश्यता की ओर संकेत कर रहे है जो मनुष्यता के लिए कलंक है.
इस अवसर पर गाँधी के स्वच्छता के सूत्र को आत्मसात करना होगा जो आज भी उतने ही प्रासंगिक है जो देश की स्वतंत्रता के पहले थे -
१. स्वच्छता स्वभाव बने। हर कोई अपना कचरा स्वयं साफ करे।
२. राजनीतिक स्वतंत्रता से जरूरी स्वच्छता है। ( चूकि अब हमें आजादी मिल चुकी है तो शारीरिक और मानसिक स्वच्छता की उतनी ही आवश्यकता है।)
३. यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ्य नहीं रह सकता।
४. बेहतर साफ-सफाई से ही गाँवों को आदर्श बनाया जा सकता है।
५. शौचालय को ड्राइंग रूम से भी अधिक साफ रखना चाहिए।
६. नदियों को स्वच्छ रख कर हम अपनी सभ्यता को जिन्दा रख सकते हैं।
७. अपने अन्दर की स्वच्छता को बढ़ाया जाना चाहिए, शेष बातें सब अपने आप ठीक हो जायेगी।
८. मैं किसी को गंदे पैर से अपने मन और घर से नहीं गुजरने दूँगा।
९. अपनी गलती को स्वीकार करना छाडू लगाने के समान है, जो अपने अन्दर को चमकदार बनाये रखती है।
१०. स्वच्छता आचरण में बादत बन जाये।
पढ़ते – पढ़ते (निरन्तर)..