Sunday, 17 July 2022

अकादमिक मृत्यु नहीं होगी

विश्वास रखें,विश्वविद्यालयों में अकादमिक मृत्यु नहीं होगी ।

समझें,शिक्षा से जुड़ी संसदीय समिति की अहम सिफारिशें और देखें मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा की एक झलक भी।

   संसदीय समिति ने अपनी यह सिफारिशें सोमवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को सौंप दी है । करीब दो दर्जन सिफारिशों में समिति ने परीक्षा प्रक्रिया को मजबूती देने, शिक्षा को चंद संस्थानों की बढ़ती दखल आदि को लेकर भी अहम सुझाव दिए गए है। 

समिति ने स्कूल शिक्षा के लिए 20 और उच्च शिक्षा के लिए 16 सिफारिशें दी हैं । समिति का कहना है कि मौजूदा समय में परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होना, गलत प्रश्न पत्र देना, बड़े पैमाने पर नकल और छात्र- परीक्षक जैसे गठजोड़ लगातार देखने को मिल रहें हैं। 

रिपोर्ट में कहा गया कि इसकी जानकारी वेबसाइट पर भी डाली जाए, जिससे आम जन को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की समय सीमा का ज्ञान हो सकेगा। 

 समिति ने कहा कि कोचिंग के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों और कालेजों का गठजोड़ एक तरह का ब्लैक एजुकेशन है। ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए ऐसे संस्थानों की मान्यता रद्द करने और उन्हें दंडित करने के लिए सरकारों को एक तंत्र बनाना चाहिए। समिति ने ऐसे मामलों की जांच के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दल गठित करने का सुझाव दिया है।

 शिक्षा किसी भी राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वर्तमान परिदृश्य में रोजगार और नई वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए संसद की शिक्षा संबंधी समिति ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में सुधार को लेकर भी अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की।

 संसदीय समिति ने अपनी पड़ताल में ना सिर्फ सभी पहलुओं की समीक्षा की बल्कि इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं।

 शिक्षा से जुड़ी इस संसदीय समिति के अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे हैं। शिक्षा संबंधी संसदीय समिति की सिफारिशें पाठ्यपुस्तकों में सुधार विषय पर रिपोर्ट –

 शिक्षण संस्थानों की कोचिंगों से मिलीभगत पर लगे रोक । शिक्षण संस्थानों के साथ कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत, प्रश्न पत्र लीक, छात्र-परीक्षक गठजोड़ जैसे मुद्दों को लेकर संसदीय समिति ने चिंता जताई है और शिक्षा मंत्रालय से सिफारिश की है कि उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना है तो इन विषयों से निपटना ही होगा। 

  उच्च शिक्षण संस्थानों को मिलने वाले सभी तरह के दान को शत-प्रतिशत टैक्स फ्री करने की भी सिफारिश की है। विदेश की तरह शिक्षकों के प्रदर्शन का आंकलन हो । परीक्षा प्रबंध और योग्यता के मानक भी तय हो । 

  स्कूल शिक्षा से लेकर उच्चशिक्षा के क्षेत्र तक जवाबदेही तय हो । इसमें शिक्षा विभाग को तिथिवार तय कार्यक्रम और कार्ययोजना के बारे में जानकारी दे ।  

   राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्धारित लक्ष्यों को स्कूल शिक्षा के माध्यम से हासिल करने के लिए संसदीय समिति ने शिक्षा विभाग से 30 जून तक खाका तैयार कर पेश करने को कहा है ।

  उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए सरकार को शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सुधार करने तथा स्कूली शिक्षा सबके लिए सुलभ हो और खाली पदों पर तुरंत भरने की चर्चा की है । 

  इसके अलावा विदेशों तर्ज पर देश में स्कूली शिक्षा से विश्वविद्यालय व कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की जवाबदेही भी तय करने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शन मूल्यांकन से शिक्षण गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलेगी।

  पाठ्यपुस्तकें पूर्वाग्रह से मुक्त हों, बाल सुलभ हो और उनमें संवैधानिक मूल्यों का समावेश भी हो। बस्ते का बोझ कम हो तथा कौशल विकास के लिए नई तकनीकों का हो इस्तेमाल।

  पढ़ाई- चित्रों, ग्राफिक्स और भ्रमण के माध्यम से हो। पढ़ाई में खेलों, नाटकों, अभिनय और कार्यशालाओं का हो उपयोग। नशीले पदार्थों के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता हो ।

  संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं में पाठ्य पुस्तकें हों साथ ही स्थानीय भाषा और बोली में पढ़ाई हो जिसके लिय  पुस्तकें होनी चाहिए ।पाठ्यपुस्तक बनाने में विषयों के विशेषज्ञों से लें राय। किताबों को स्टूडेंट फ्रेंडली बनाने पर हो जोर। 

  नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे मॉडल  विकसित हों। इतिहास की शिक्षा के लिए नई तकनीकों का हो इस्तेमाल। पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के योगदान को मिले प्रतिनिधित्व।

 उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ अपने जुड़ाव और वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। ताकि कुशल कर्मचारियों की कमी को खत्म किया जा सके।

  भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के दौरान यह ध्यान दिया जाए कि किसी भी नियामक के कामकाज व अधिकारों में किसी तरह का टकराव न पैदा हो। उनके अधिकार और जवाबदेही में स्पष्टता होना चाहिए।

  डीम्ड विश्वविद्यालय की जगह सिर्फ विश्वविद्यालय शब्द के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए। क्योंकि इससे उच्च शिक्षा में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। खासकर विदेशों में इन संस्थानों को लेकर भ्रम रहता है।

  उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए परीक्षा प्रबंध योग्यता के मानक तय होने चाहिए। जिनका मूल्यांकन नैक रेटिंग के दौरान होना चाहिए । इससे ऐसे सभी संस्थानों की पहचान भी हो सकेगी।

मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा की एक झलक

संतोष का विषय है की मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने शिक्षक भर्ती, पाठ्यक्रमों का निर्माण, इतिहास बोध, रोजगारोन्मुखी, परिणाम मूलक पाठ्यक्रमों को लागू किया है ।

 मेडिकल, कृषि आधारित पाठ्यक्रमों को लागू किया है । शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा के मद्देनजर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया जा चुका है ।

कम्पुटर, उद्यमिता , कौशल उन्नयन और भाषा कौशल आधारित प्रशिक्षण सभी शिक्षकों के लिए इसी माह से प्रारम्भ हो रहे हैं।

विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक कैलेंडर का कड़ाई से पालन होने से परिणाम समय पर आ पाए हैं । 

शोध और रोजगार के लिए विश्वविद्यालयों में एन्क्युवेशन सेंटर खोले जा रहे हैं । 

हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी में चिकित्सा और अभियन्त्रिकी के लिए पुस्तकें लिखाई जा रही हैं ।

नैतिक मूल्यों के लिए पाठ्यक्रम लागू किये गए हैं . आधारभूत संरचना के लिए प्रदेश भर के महाविद्यालयों,विश्वविद्यालयों को अनुदान देकर उन्नत किया जा रहा है ।

 राजगढ़ में व्यावसायिक पाठ्यक्रम आधारित स्वतंत्र महा विद्यालय खोला गया है । 

भारत सरकार के मदद से प्रदेश में लगभग सभी ट्रायबल एरिया में उच्च मानक के आधार पर स्वतंत्र माडल महाविद्यालय खोले जा रहे हैं ।

सच कहूँ तो इन दो वर्षों में  विद्यार्थियों को केंद्र बनाकर शिक्षक की गुणवत्ता , आधारभूत संरचना, वर्षों के लंबित न्यायालयीन प्रकरणों को सुलझाया गया है ।

नैक मूल्यांकन में पहली वार देश का कोई महाविद्यालय ए++ पाया है , तो माधव महाविद्यालय उज्जैन है ।

फिर भी जी ई आर बढ़ाना और रोजगार, स्वरोजगार देना चुनौती है, पर असम्भव चुनौती नहीं।

 तात्पर्य यह की तीन दिन पहले पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर जी की जो चिंताएं समाचार पत्र से लाकर फेसबुक तक आई हैं, जिन पर पाठकों ने अपनी भरपूर प्रतिक्रया दी है, उन सब का समाधान यदि आप धैर्य से समझें तो उच्च शिक्षा विभाग मध्य प्रदेश कर रहा है । 

सच यह भी है की कुलपतियों के चयन और उनकी कार्यशैली पर कहीं न कहीं चिंता स्वाभाविक है। प्रशासनिक अनुभव उनमें अवश्य कम होगा किन्तु अकादमिक अनुभव प्राय: सभी कुलपतियों में है। विभाग के पास क्षमतावान संम्भावनाओं से भरी शिक्षकों की (संख्या बल में थोड़ा कम सही किन्तु) अच्छी टोली है। 

 विश्वास रखिए मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में  अकादमिक मृत्यु नहीं होगी ।
 
सादर

Monday, 11 July 2022

गुरु शिष्य परंपरा



भारत की संपूर्ण परंपरा को ज्ञान परंपरा, ऋषि परंपरा, साधना परंपरा और सिद्ध परंपरा, गुरु- शिष्य परंपरा रही है।  विवेकानंद, महात्मा गांधी सहित संपूर्ण तेज परंपरा प्रकाश परंपरा ज्ञान परंपरा शौर्य परंपरा का बोध समाज में यथाशक्ति फैलाने को ही अपना स्वधर्म समझना चाहिए। जो सत्य का चित का और आनंद का धर्म है वही भारतीय संस्कृति का सुधर्म है ।

राष्ट्र से आगे ब्रह्मांड और परमेष्ठी तक को बौद्धिक स्तर पर स्पर्श करना चाहिए। इस व्यापक संदर्भ में स्वयं को तलाशना चाहिए। अंतर्दृष्टि की शक्ति को विकसित कर विराट लोक चेतना में प्रवेश करने की सामर्थ्य प्राप्त करना चाहिए ,तभी स्वधर्म का समझना संभव है ।
वर्तमान में वैचारिक दृष्टि में अनेक आसुरी शक्तियां दिखाई देती है जो व्यक्तित्व निर्माण में बाधक और अवरोधक तत्व के रूप में सामने आती है ।

हमें भारत अर्थात प्रकाश में रत , ज्ञान में रत भारती कहलाने का अधिकार है ।चेतना सूर्य की उपासना करते हुए स्वयं को ट्रांस एंड करते हुए पूरे भारत की चेतना के साथ और विश्वेश्वर की चेतना के साथ एक में वो कर हमारा यह समाज का मारी उच्च शिक्षा संस्थाएं काम करें यही मेरी मंगल कामना है भारत के अमर मदन की महत्वपूर्ण है महत्वपूर्ण है भारत में भारत में कुल परंपरा कुल परंपरा के गुरु परंपरा कहती है हमें भारत के साथ शेष विश्व को भी आधुनिक काल के संपूर्ण विश्व को जानने का शांत चित्र से प्रयास करना चाहिए पहले हमें भारत के सत्य को जानना चाहिए फिर उसको विश्व के सत्य के रूप में प्रकृति करण करना चाहिए यह संपूर्ण शक्ति अगर कहीं है तो भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत है भारत को महत्व इस आर्थिक सांस्कृतिक पुरुषार्थ में है सनातन धर्म की साधना में है कोमलता में है रिजुता विवेक और पुण्य कर्मों की साधना में है बर्बरता पैसा चिता मैं जिस तरह से उभर रही है उसका सामना हम भारतीय प्रज्ञा परंपरा धर्म और श्रेष्ठ कार्य ईश्वरी उपासना के माध्यम से ही समाप्त कर सकते हैं बौद्धिक चेतना का जागरण बॉडी को का कर्तव्य राजसूय यज्ञ करना है बौद्धिक आलस्य के साथ केवल पश्चिम कर देना या विरोध प्रदर्शन करना दयनीय स्थिति है हमें पुरुषार्थ करना चाहिए इतिहास को समझना होगा इसके मूंग को कठोर बौद्धिक परिश्रम करने की आवश्यकता है और इसके लिए हमारी गुरु परंपरा उन्हें प्रेरणा देती है हमारी दृष्टि अगर हमारी परम जुड़ जाती है तो निश्चित रूप से मान्यताओं आस्थाओं और सत्य के आधार पर आज वैश्विक हमारी भी कुरु कुरु ताऊ के साथ लड़ सकते हैं.
आज के इस अत्यंत महान्य मैं आत्मा भरीत भावा भारित प्रेरणास्पद पावन अवसर पर मां भारती के चरणो में कोटि-कोटि नमन अर्पित करता हूं साथ ही उस गुरु परंपरा को भी प्रणाम करता हूं परंपरा आज अक्षर रुप से हमारे सामने हैं दिव्य चेतना को मंगलमय चेतना को भी प्रणाम करते हैं जो हमारे इन गुरु परंपराओं के अंदर विराजित है. हम जिस विराट चेतना की बात करते हैं व्हाट इस ब्रह्मांड से किस प्रकार जुड़ी हुई है इसकी संस्कृति की गहराई में जाना होगा संस्कृति सनातन संस्कृति है यह लक है आनंद मुल्क है चेतन मुल्क है सत्य मुल्क है वे द मुल्क है ऋषि मुल्क है ईश्वर मुल्क है आत्मा मुल्क है वह हम सबको किशन हम सब में से अपने आप को अभिव्यक्त करना चाहती है व्यक्त हो दान देना चाहते हैं या नहीं यह हमें तय करना होगा. जींस पहन लेने में कोई डर नहीं है जो जींस गुनगुना रहा है छटपटा रहा है वेद की दिशाओं की अभिव्यक्ति करना चाहता है उसको दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
टी के अंदर तीन प्रकार की शक्तियां काम करती है वरना की एक चिंतन की और एक क्रिया की. एक प्रवाह है एक देवकूल और एक ऋषि कुल 1 पुत्र को. के पीछे हमारी संस्कृत का अत्यंत समृद्ध रूप में प्रामाणिक रूप में परिषद रूप में प्रवाह है देव कॉल रिसीव कॉल गुरुकुल और पवित्र कॉल.
हम परिवर्तन के विरोधी नहीं हैं अरे शास्त्र कहते हैं कि परिवर्तन का एक प्रयोजन होना चाहिए. गच्छति की जगत:, संस रति इति संसार:। वेद इसे नीति नीति कह कर बताना चाहते हैं एपीके विकसित हो रही है हास कर रही है उल्लास कर रही है । प्रहास कर रही है क्रीड़ा कर रही है।
हमारी संस्कृति चिरयौवना संस्कृति है।
इसी संदीपनी आश्रम में शिक्षा प्राप्त विद्या प्राप्त करने वाले श्री कृष्ण कहते हैं मैं चीर एक अव्यक्त हूं, विलसित होता हुआ निरंतर गुंजायमान निरंतर प्रकाशमान हूं। यही दृष्टि हमेशा चैतन्य की दृष्टि रही है। इसे ठीक से समझना होगा समझना होगा। हमारा सुधर्मा और जो धर्म का प्रभु अच्युत है उससे अलग होकर हम अपनी सुधर्म को समझ नहीं पाएंगे।
आदिगुरु वेदव्यास जी ने कहा है- मैं गुह्य ही ब्रह्म को बताता हूं- मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं है सारी सृष्टि के केंद्र में यह मनुष्य है. इसीलिए केंद्र को हम पटोले. उसकी ताकत क्या है उसका लक्ष्य क्या है और हम पूरे समाज को लेकर चिंतन करें. बोल समाज को क्यों लास्ट को लेकर. पूरे राष्ट्र ही को क्यों पूरे ब्रह्मांड को , परमेष्ठी को भी आत्मसात करें.
यह कैसे होगा? इसके लिए और बुद्धि की आवश्यकता है बुद्धि के लिए गुरु चाहिए, शास्त्र चाहिए इष्ट देवता चाहिए चाहिए।
आज के इस पावन अवसर पर इतना ही कहना चाहूंगा कि हम गुरु की मां में प्रवेश करें, तब तो रूपी गुरु को आत्मसात करें, गुरु को आत्मसात करें, शास्त्र की आत्मा को आत्मसात करें, और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को जीवन में जीने अभ्यास करें। हम सब ईश्वर के पी के निमित्त है गीता कहती है - निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन। हे सव्यसाची निमित्त मात्र हो जा।


संपूर्ण परंपरा की ज्ञान परंपरा निषाद परंपरा साधना परंपरा और सिद्ध परंपरा डोगरा परंपरा की अध्यक्षता रही है इतिहास डिस्ट्रिक्ट के सामने लाए तो जो घटनाओं के मध्य में पढ़ती हैं उनके बाहरी विस्तार तक संकीर्ण नहीं रहती विवेकानंद महात्मा गांधी सहित संपूर्ण तेज परंपरा प्रकाश परंपरा ज्ञान परंपरा शौर्य परंपरा का बोध समाज में यथाशक्ति फैलाने को ही अपना स्वधर्म समझना चाहिए जो सत्य का चित्र का और आनंद का धर्म है वही भारतीय संस्कृति का सुधर्म है राष्ट्र से आगे ब्रह्मांड और परमेष्ठी तक को बौद्ध के स्तर पर स्पर्श करना चाहिए इस व्यापक संदर्भ में स्वयं को लोकेट करना चाहिए अंतर्दृष्टि की शक्ति को विकसित कर विराट लोक चेतना में प्रवेश करने की सामर्थ्य प्राप्त करना चाहिए तभी स्वधर्म का बहुत संभव है दृष्टि से समाज में अनेक आसुरी शक्तियां दिखाई देती है बाधक और अवरोधक तत्व है हमें भारत अर्थात और रक्त निरंतरता के साथ भारती कहलाने का अधिकार है चेतना सूर्य की उपासना करते हुए स्वयं को ट्रांस एंड करते हुए पूरे भारत की चेतना के साथ और विश्वेश्वर की चेतना के साथ एक में वो कर हमारा यह समाज का मारी उच्च शिक्षा संस्थाएं काम करें यही मेरी मंगल कामना है भारत के अमर मदन की महत्वपूर्ण है महत्वपूर्ण है भारत में भारत में कुल परंपरा कुल परंपरा के गुरु परंपरा कहती है हमें भारत के साथ शेष विश्व को भी आधुनिक काल के संपूर्ण विश्व को जानने का शांत चित्र से प्रयास करना चाहिए पहले हमें भारत के सत्य को जानना चाहिए फिर उसको विश्व के सत्य के रूप में प्रकृति करण करना चाहिए यह संपूर्ण शक्ति अगर कहीं है तो भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत है भारत को महत्व इस आर्थिक सांस्कृतिक पुरुषार्थ में है सनातन धर्म की साधना में है कोमलता में है रिजुता विवेक और पुण्य कर्मों की साधना में है बर्बरता पैसा चिता मैं जिस तरह से उभर रही है उसका सामना हम भारतीय प्रज्ञा परंपरा धर्म और श्रेष्ठ कार्य ईश्वरी उपासना के माध्यम से ही समाप्त कर सकते हैं बौद्धिक चेतना का जागरण बॉडी को का कर्तव्य राजसूय यज्ञ करना है बौद्धिक आलस्य के साथ केवल पश्चिम कर देना या विरोध प्रदर्शन करना दयनीय स्थिति है हमें पुरुषार्थ करना चाहिए इतिहास को समझना होगा इसके मूंग को कठोर बौद्धिक परिश्रम करने की आवश्यकता है और इसके लिए हमारी गुरु परंपरा उन्हें प्रेरणा देती है हमारी दृष्टि अगर हमारी परम जुड़ जाती है तो निश्चित रूप से मान्यताओं आस्थाओं और सत्य के आधार पर आज वैश्विक हमारी भी कुरु कुरु ताऊ के साथ लड़ सकते हैं.
आज के इस अत्यंत महान्य मैं आत्मा भरीत भावा भारित प्रेरणास्पद पावन अवसर पर मां भारती के चरणो में कोटि-कोटि नमन अर्पित करता हूं साथ ही उस गुरु परंपरा को भी प्रणाम करता हूं परंपरा आज अक्षर रुप से हमारे सामने हैं दिव्य चेतना को मंगलमय चेतना को भी प्रणाम करते हैं जो हमारे इन गुरु परंपराओं के अंदर विराजित है. हम जिस विराट चेतना की बात करते हैं व्हाट इस ब्रह्मांड से किस प्रकार जुड़ी हुई है इसकी संस्कृति की गहराई में जाना होगा संस्कृति सनातन संस्कृति है यह लक है आनंद मुल्क है चेतन मुल्क है सत्य मुल्क है वे द मुल्क है ऋषि मुल्क है ईश्वर मुल्क है आत्मा मुल्क है वह हम सबको किशन हम सब में से अपने आप को अभिव्यक्त करना चाहती है व्यक्त हो दान देना चाहते हैं या नहीं यह हमें तय करना होगा. जींस पहन लेने में कोई डर नहीं है जो जींस गुनगुना रहा है छटपटा रहा है वेद की दिशाओं की अभिव्यक्ति करना चाहता है उसको दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
टी के अंदर तीन प्रकार की शक्तियां काम करती है वरना की एक चिंतन की और एक क्रिया की. एक प्रवाह है एक देवकूल और एक ऋषि कुल 1 पुत्र को. के पीछे हमारी संस्कृत का अत्यंत समृद्ध रूप में प्रामाणिक रूप में परिषद रूप में प्रवाह है देव कॉल रिसीव कॉल गुरुकुल और पवित्र कॉल.
हम परिवर्तन के विरोधी नहीं हैं अरे शास्त्र कहते हैं कि परिवर्तन का एक प्रयोजन होना चाहिए. गच्छति की जगत:, संस रति इति संसार:। वेद इसे नीति नीति कह कर बताना चाहते हैं एपीके विकसित हो रही है हास कर रही है उल्लास कर रही है । प्रहास कर रही है क्रीड़ा कर रही है।
हमारी संस्कृति चिरयौवना संस्कृति है।
इसी संदीपनी आश्रम में शिक्षा प्राप्त विद्या प्राप्त करने वाले श्री कृष्ण कहते हैं मैं चीर एक अव्यक्त हूं, विलसित होता हुआ निरंतर गुंजायमान निरंतर प्रकाशमान हूं। यही दृष्टि हमेशा चैतन्य की दृष्टि रही है। इसे ठीक से समझना होगा समझना होगा। हमारा सुधर्मा और जो धर्म का प्रभु अच्युत है उससे अलग होकर हम अपनी सुधर्म को समझ नहीं पाएंगे।
आदिगुरु वेदव्यास जी ने कहा है- मैं गुह्य ही ब्रह्म को बताता हूं- मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं है सारी सृष्टि के केंद्र में यह मनुष्य है. इसीलिए केंद्र को हम पटोले. उसकी ताकत क्या है उसका लक्ष्य क्या है और हम पूरे समाज को लेकर चिंतन करें. बोल समाज को क्यों लास्ट को लेकर. पूरे राष्ट्र ही को क्यों पूरे ब्रह्मांड को , परमेष्ठी को भी आत्मसात करें.
यह कैसे होगा? इसके लिए और बुद्धि की आवश्यकता है बुद्धि के लिए गुरु चाहिए, शास्त्र चाहिए इष्ट देवता चाहिए चाहिए।
आज के इस पावन अवसर पर इतना ही कहना चाहूंगा कि हम गुरु की मां में प्रवेश करें, तब तो रूपी गुरु को आत्मसात करें, गुरु को आत्मसात करें, शास्त्र की आत्मा को आत्मसात करें, और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को जीवन में जीने अभ्यास करें। हम सब ईश्वर के पी के निमित्त है गीता कहती है - निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन। हे सव्यसाची निमित्त मात्र हो जा।

Saturday, 2 July 2022

Ram Bhuwan Singh Kushwah कुलपति तो कुल के पति हैं।उनका वरण नहीं स्थापन होता है। घर जमाई बिगड़ैल बन जाये और कुल परम्परा तो बंदर के हाथ में झुनझुना ही होगी।

ऐसे में कुल की पद-प्रतिष्ठा चाटुकार,भाई- भतीजा,जाति -विरादरी, भाषा -भाषा, क्षेत्र-क्षेत्रीय हथिया ले तो वरण के लिए चयन करनेवाले ही दोषी हैं।

चयन की प्रक्रिया के पीछे मनोनयन हो रहा हो तो मन के नयन सदा नयन सुख ही बनेंगे आवश्यक नहीं।

मत छेड़िए, गहरा दर्द झेल रहा है, भारतीय ज्ञान परम्परा इस अजब गजब चयन तंत्र से। 

जाने दीजिए जिन्होंने तंत्र सुधारने का ठेका लिया है वो जाने।