विश्वास रखें,विश्वविद्यालयों में अकादमिक मृत्यु नहीं होगी ।
समझें,शिक्षा से जुड़ी संसदीय समिति की अहम सिफारिशें और देखें मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा की एक झलक भी।
संसदीय समिति ने अपनी यह सिफारिशें सोमवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को सौंप दी है । करीब दो दर्जन सिफारिशों में समिति ने परीक्षा प्रक्रिया को मजबूती देने, शिक्षा को चंद संस्थानों की बढ़ती दखल आदि को लेकर भी अहम सुझाव दिए गए है।
समिति ने स्कूल शिक्षा के लिए 20 और उच्च शिक्षा के लिए 16 सिफारिशें दी हैं । समिति का कहना है कि मौजूदा समय में परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होना, गलत प्रश्न पत्र देना, बड़े पैमाने पर नकल और छात्र- परीक्षक जैसे गठजोड़ लगातार देखने को मिल रहें हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि इसकी जानकारी वेबसाइट पर भी डाली जाए, जिससे आम जन को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की समय सीमा का ज्ञान हो सकेगा।
समिति ने कहा कि कोचिंग के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों और कालेजों का गठजोड़ एक तरह का ब्लैक एजुकेशन है। ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए ऐसे संस्थानों की मान्यता रद्द करने और उन्हें दंडित करने के लिए सरकारों को एक तंत्र बनाना चाहिए। समिति ने ऐसे मामलों की जांच के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दल गठित करने का सुझाव दिया है।
शिक्षा किसी भी राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वर्तमान परिदृश्य में रोजगार और नई वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए संसद की शिक्षा संबंधी समिति ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में सुधार को लेकर भी अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की।
संसदीय समिति ने अपनी पड़ताल में ना सिर्फ सभी पहलुओं की समीक्षा की बल्कि इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं।
शिक्षा से जुड़ी इस संसदीय समिति के अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे हैं। शिक्षा संबंधी संसदीय समिति की सिफारिशें पाठ्यपुस्तकों में सुधार विषय पर रिपोर्ट –
शिक्षण संस्थानों की कोचिंगों से मिलीभगत पर लगे रोक । शिक्षण संस्थानों के साथ कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत, प्रश्न पत्र लीक, छात्र-परीक्षक गठजोड़ जैसे मुद्दों को लेकर संसदीय समिति ने चिंता जताई है और शिक्षा मंत्रालय से सिफारिश की है कि उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना है तो इन विषयों से निपटना ही होगा।
उच्च शिक्षण संस्थानों को मिलने वाले सभी तरह के दान को शत-प्रतिशत टैक्स फ्री करने की भी सिफारिश की है। विदेश की तरह शिक्षकों के प्रदर्शन का आंकलन हो । परीक्षा प्रबंध और योग्यता के मानक भी तय हो ।
स्कूल शिक्षा से लेकर उच्चशिक्षा के क्षेत्र तक जवाबदेही तय हो । इसमें शिक्षा विभाग को तिथिवार तय कार्यक्रम और कार्ययोजना के बारे में जानकारी दे ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्धारित लक्ष्यों को स्कूल शिक्षा के माध्यम से हासिल करने के लिए संसदीय समिति ने शिक्षा विभाग से 30 जून तक खाका तैयार कर पेश करने को कहा है ।
उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए सरकार को शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सुधार करने तथा स्कूली शिक्षा सबके लिए सुलभ हो और खाली पदों पर तुरंत भरने की चर्चा की है ।
इसके अलावा विदेशों तर्ज पर देश में स्कूली शिक्षा से विश्वविद्यालय व कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की जवाबदेही भी तय करने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शन मूल्यांकन से शिक्षण गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
पाठ्यपुस्तकें पूर्वाग्रह से मुक्त हों, बाल सुलभ हो और उनमें संवैधानिक मूल्यों का समावेश भी हो। बस्ते का बोझ कम हो तथा कौशल विकास के लिए नई तकनीकों का हो इस्तेमाल।
पढ़ाई- चित्रों, ग्राफिक्स और भ्रमण के माध्यम से हो। पढ़ाई में खेलों, नाटकों, अभिनय और कार्यशालाओं का हो उपयोग। नशीले पदार्थों के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता हो ।
संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज भाषाओं में पाठ्य पुस्तकें हों साथ ही स्थानीय भाषा और बोली में पढ़ाई हो जिसके लिय पुस्तकें होनी चाहिए ।पाठ्यपुस्तक बनाने में विषयों के विशेषज्ञों से लें राय। किताबों को स्टूडेंट फ्रेंडली बनाने पर हो जोर।
नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे मॉडल विकसित हों। इतिहास की शिक्षा के लिए नई तकनीकों का हो इस्तेमाल। पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के योगदान को मिले प्रतिनिधित्व।
उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ अपने जुड़ाव और वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। ताकि कुशल कर्मचारियों की कमी को खत्म किया जा सके।
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के दौरान यह ध्यान दिया जाए कि किसी भी नियामक के कामकाज व अधिकारों में किसी तरह का टकराव न पैदा हो। उनके अधिकार और जवाबदेही में स्पष्टता होना चाहिए।
डीम्ड विश्वविद्यालय की जगह सिर्फ विश्वविद्यालय शब्द के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए। क्योंकि इससे उच्च शिक्षा में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। खासकर विदेशों में इन संस्थानों को लेकर भ्रम रहता है।
उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए परीक्षा प्रबंध योग्यता के मानक तय होने चाहिए। जिनका मूल्यांकन नैक रेटिंग के दौरान होना चाहिए । इससे ऐसे सभी संस्थानों की पहचान भी हो सकेगी।
मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा की एक झलक
संतोष का विषय है की मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने शिक्षक भर्ती, पाठ्यक्रमों का निर्माण, इतिहास बोध, रोजगारोन्मुखी, परिणाम मूलक पाठ्यक्रमों को लागू किया है ।
मेडिकल, कृषि आधारित पाठ्यक्रमों को लागू किया है । शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा के मद्देनजर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया जा चुका है ।
कम्पुटर, उद्यमिता , कौशल उन्नयन और भाषा कौशल आधारित प्रशिक्षण सभी शिक्षकों के लिए इसी माह से प्रारम्भ हो रहे हैं।
विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक कैलेंडर का कड़ाई से पालन होने से परिणाम समय पर आ पाए हैं ।
शोध और रोजगार के लिए विश्वविद्यालयों में एन्क्युवेशन सेंटर खोले जा रहे हैं ।
हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी में चिकित्सा और अभियन्त्रिकी के लिए पुस्तकें लिखाई जा रही हैं ।
नैतिक मूल्यों के लिए पाठ्यक्रम लागू किये गए हैं . आधारभूत संरचना के लिए प्रदेश भर के महाविद्यालयों,विश्वविद्यालयों को अनुदान देकर उन्नत किया जा रहा है ।
राजगढ़ में व्यावसायिक पाठ्यक्रम आधारित स्वतंत्र महा विद्यालय खोला गया है ।
भारत सरकार के मदद से प्रदेश में लगभग सभी ट्रायबल एरिया में उच्च मानक के आधार पर स्वतंत्र माडल महाविद्यालय खोले जा रहे हैं ।
सच कहूँ तो इन दो वर्षों में विद्यार्थियों को केंद्र बनाकर शिक्षक की गुणवत्ता , आधारभूत संरचना, वर्षों के लंबित न्यायालयीन प्रकरणों को सुलझाया गया है ।
नैक मूल्यांकन में पहली वार देश का कोई महाविद्यालय ए++ पाया है , तो माधव महाविद्यालय उज्जैन है ।
फिर भी जी ई आर बढ़ाना और रोजगार, स्वरोजगार देना चुनौती है, पर असम्भव चुनौती नहीं।
तात्पर्य यह की तीन दिन पहले पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर जी की जो चिंताएं समाचार पत्र से लाकर फेसबुक तक आई हैं, जिन पर पाठकों ने अपनी भरपूर प्रतिक्रया दी है, उन सब का समाधान यदि आप धैर्य से समझें तो उच्च शिक्षा विभाग मध्य प्रदेश कर रहा है ।
सच यह भी है की कुलपतियों के चयन और उनकी कार्यशैली पर कहीं न कहीं चिंता स्वाभाविक है। प्रशासनिक अनुभव उनमें अवश्य कम होगा किन्तु अकादमिक अनुभव प्राय: सभी कुलपतियों में है। विभाग के पास क्षमतावान संम्भावनाओं से भरी शिक्षकों की (संख्या बल में थोड़ा कम सही किन्तु) अच्छी टोली है।
विश्वास रखिए मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में अकादमिक मृत्यु नहीं होगी ।
सादर