Sunday, 19 June 2022

योग yog

आप सही कह रहे हैं। सही भी है पेंशन पाकर, मुफ्त सुविधा हथिया कर जीवन का संघर्ष समाप्त होता है।

जीवन में भोग की वृत्ति बढ़ती है।

 वैराग्य का अभ्यास लगभग शून्य हो जाता है।

साहित्य स्मरण कराता है-

साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूं अतिथि न भूखा जाय।।

आज शिक्षा से विद्या जो जीवन में कला और मूल्य का बोध कराता है, पाठ्यक्रम में सिकुड़ता जा रहा है।

रोजगार और स्वरोजगार नैतिक आधार छोड़ रहे हैं।

दवा हो या दारू, भोजन हो भजन सब मिलावट के शिकार होकर समाज में ज़हर घोल रहे हैं।

पंच परमेशवर, दीपदान कहानी, हल्दीघाटी, तो छोड़िए चार पंक्ति की कविता-
'मुझे तोड़ लेना वन माली ' भी पाठ्यक्रम से गायब हो गई।

भाषा की परीक्षा वस्तु निष्ठ प्रश्न आधारित हो गई। कैसे जिंदा रहेगी मातृभाषा? जब विद्यार्थियों को लिखना ही नहीं आयेगा?

मंदिर, गुरुद्वारे,पूजाघर के मनोविज्ञान को पढ़ना-पढ़ाना गंगा -जमुनी के लय ताल के रसास्वाद को स्वाद विगाड़ता है!

तकनीकी ग्यान, आर्टीफिशियल इंन्टेलीजेंस की अपनी मर्यादा होते हुए भी सुरसा मुखी हो रही है।

अतः समझना होगा-

भारत भोग नहीं 'तेनत्यक्तेनभुंजिथा' है। संचय नहीं अपरिग्रह है। 

कल योग  को योगा दिवस के रूप में मनाया जायेगा, जहां से यम और नियम के दसों  नियामक तत्व गायब होंगे!

हर उस व्यक्ति का भाषण होगा , जो अंग -अंग को तोड़ता है, जो अपने पांचों इंद्रियों से अहार लेता है,वह खाद्य सामग्री का प्रत्याहार समझायेगा। 

जो पंच प्राण और उनके उप प्राणों को भी नहीं जानता वह प्राणायाम समझायेगा।

फिर भी इस योग की सुरसरी में अगर कुछ लोग भी गोता लगा ध्यान और समाधि का मोती प्राप्त कर सकेंगे तो भी इस आह्वान को सार्थक माना जायेगा।

विश्वास है आसन में बैठकर  सनातनी धारणा को आत्मसात कर हम अग्निवीर, त्यागवीर, दानवीर, कर्मवीर बन राष्ट्र और संस्कृति के संरक्षण और सेवा योग्य बन सकेंगे।

शुभकामनाएं

20/6/22

1 comment:

  1. दादुर वक्ता हुई गये....अद्यतन दशा..बहुत अच्छा लेखन...साधुवाद

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