राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020
यह शिक्षा नीति बृहत्तर दृष्टिकोण समाहित किये
हुए एक अभूतपूर्व दस्तावेज है। यह एक ऐसी शिक्षा नीति है जिस पर न केवल शिक्षाविद
बल्कि अर्थशास्त्री, उद्योगपति और वैज्ञानिक भी विचार विमर्श किये हैं। यह भारत
जैसे युवा देश के लिए रोजगार देनेवाली शिक्षा नीति है। यह वह शिक्षा नीति है जिसके
आँगन से अर्थव्यवस्था जन्म लेगी। इसमें तकनालोजी भी है तो आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस
भी, इसमें डाटाबैंक भी है तो इंडस्ट्रियल मुद्दे भी। इसमें महिलाओं की चिंता है तो
वंचितों की भी, युवाओं की चिंता है तो शिशुओं की भी. शिक्षकों की चिंता तो
अभिभावकों की भी, इसीलिए इसे सर्वसमावेशी और सर्वस्पर्शी कहा जा रहा है।
अत: यह समझ लेना आवश्यक है की स्वतंत्रता से अब तक कब-कब क्या-क्या हुआ ? स्वतंत्रता के बाद 1948 में डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ का गठन हुआ था। फिर 1952 में मुदालियर आयोग और बाद में ‘कोठारी आयोग’ (1964-1966) आया, जिसकी सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार महत्त्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव पारित हुआ था। 1968 के बाद अगस्त, 1985 ‘शिक्षा की चुनौती’ नामक एक दस्तावेज तैयार किया गया जिसके आधार पर 1986 में भारत सरकार ने ‘नई शिक्षा नीति 1986’ का प्रारूप तैयार किया।
केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के निर्माण के लिए जून, 2017 में इसरों (ISRO) प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। 2019 तक ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के लिये जनता से सलाह माँगी और मई, 2019 में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का मसौदा सामने आया।
29, जुलाई-2020 को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ को मंज़ूरी दी। इस तरह पिछले पांच वर्षों में राष्ट्र गंभीर मंथन किया तब यह शिक्षा नीति सामने आई। इन वषों में पिछली शिक्षा नीतिओं की तुलना में करोंड़ों लोंगों, शिक्षा के सारे भागीदारों– माता-पिता, शिक्षक-अभिभावक-विद्यार्थी, राजनैतिक प्रतिनिधियों, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों सब ने चर्चा में न केवल भाग लिया बल्कि अपने-अपने गंभीर सुझाव भी दिए। ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक की चर्चा के बाद, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के निर्माण की भूमिका बनी। इसीलिए इस आलेख के लिखने तक देश के किसी भी कोने से, किसी वर्ग से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर कोई सार्थक विरोध सामने नहीं आया है।
दृष्टिपथ (vision) और सरकार का संकल्प: पूरी
नीति पर विचार करने के पहले ध्यान रखना होगा यह ‘नई शिक्षा नीति’ नहीं ‘राष्ट्रीय
शिक्षा नीति’ है। जो अपने नाम से ही उस मूल चेतना को स्पर्श कराती है, जहाँ भारतीय
संस्कृति का प्राण तत्व बसता है।
पहले समझे नीति क्या है ? नीति अर्थात एक
‘विज़न’। यह शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के माध्यम से लाया गया राष्ट्र के जन का एक
‘दृष्टिपथ’ है। सामान्यत: दृष्टिपथ मार्गदर्शी होते हैं और आवश्यक नहीं की उनका
अक्षरशः पालन भी हो। यह सरकारों के संकल्प पर निर्भर करता है। इसलिए पिछली सरकारों
की कई नीतियां संकल्प के आभाव में लागू नहीं हो पाई, किन्तु जब प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी जी कहते हैं कि “यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है।” तो समझना
होगा भारत सरकार इसे लागू करने को संकल्पित है। यह नीति कैलेंडर वर्ष 20-21 से
अपने कुछ हिस्सों के साथ देश भर में लागू हो गई है।
मा.प्रधानमंत्री जी ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सभी के परामर्श से
तैयार की गई है। यह कोई सर्कुलर नहीं बल्कि महायज्ञ है। जो नए देश की नींव रखेगा और एक नई सदी तैयार करेगा। अब पढ़ाई ही नहीं ‘बर्किंग कल्चर’ को डेवलेप किया जागेया। इसके लिए ‘प्रज्ञावान
शिक्षक’ तैयार कर राष्ट्र को ‘अच्छे छात्र और नागरिक’
देना ही नहीं तो उनको ‘अपनी जड़ों से जुडा ग्लोबल सिटीजन’ बनाना इस नीति का लक्ष्य
है, ।’’
स्कूली बच्चों के घर की बोली और स्कूल की सीखने
की भाषा एक ही होनी चाहिए। इसमें पाँचवी तक के बच्चों को सहायता मिलेगी। जहां तक संभव हो कम से कम ग्रेड-5 तक शिक्षा का
माध्यम घर की भाषा, मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद स्थानीय भाषा को जहां तक
संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। सार्वजनिक एवं निजी स्कूल इसका
अनुपालन करेंगे। किसी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
प्री-प्राइमरी से इंटर तक 100 फीसदी नामांकन होगा। आरम्भिक बाल्यावस्था देखभाल यानी तीन वर्ष की आयु से
लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा अर्थात ग्रेड-12 तक शिक्षा
नि:शुल्क एवं अनिवार्य होगी। भारत में आज टैलेंट-टेक्नोलॉजी की वजह से गरीब
व्यक्ति को बढऩे का मौका मिल सकता है। शिक्षा में
आटोनामी चाहिए। नए देश की नींव रखना और एक नई सदी तैयार करना इस शिक्षा नीति का
संकल्प है।’’ ध्यान रखना होगा नया राष्ट्र नहीं बनाना है युवा
देश के माध्यम से अर्थात युग के अनुरूप नए तंत्र को विकसित कर चिर पुरातन राष्ट्र
को पुन: जगद्गुरु बनाना है।
इस पूरी शिक्षा नीति को चार भागों में बाँट कर देखनी चाहिए
जिससे इसको नियमन किया जायेगा – पहला- स्कूल शिक्षा, दूसरा- उच्च शिक्षा, तीसरा-शिक्षक
निर्माण, और चौथा- वित्त पोषण और निगरानी।
विद्यालयीन शिक्षा, अपेक्षित परिणामों हेतु नीतियाँ-
1. प्राथमिक शिक्षा को हमें दो स्तरों
में विभाजन कर देखना होगा- यह व्यवस्था तीन-तीन के दो समूहों पर टिकी है। पहले तीन
आधार हैं- रीडिंग, रायटिंग और अर्थमैटिक तो दूसरें तीन आधार हैं– सिखाना,
स्वास्थ्य और साक्षरता।
(क). 3 वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी / बालवाटिका के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण ‘प्रारंभिक
बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा’ की उपलब्धता सुनिश्चित होगी ।
(ख). स्कूलों में अब-तक जहाँ पढ़ाई कक्षा एक से शुरू होती थी, वहीं अब तीन साल के
प्री-प्राइमरी के बाद कक्षा 3 से 5 के तीन साल शामिल हैं। फिर कक्षा 6 से 8 तक की कक्षा। चौथी श्रेणी (कक्षा 9 से 12वीं तक ) 4 साल की होगी। पहले जहाँ 11वीं कक्षा से विषय चुने जाते थे, अब 9वीं से चुन सकेंगे।
(ग). कक्षा-6 से
ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें
इंटर्नशिप की व्यवस्था भी दी जाएगी। साथ ही मातृभाषा को
कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का
सुझाव दिया गया है।
(घ). महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है की अब
पांचवी तक के शिक्षण का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा अथवा
क्षेत्रीय भाषा होगी ।
2. विद्यालयीन शिक्षा के इस महत्वपूर्ण
लक्ष्य की प्राप्ति हेतु करना क्या है-
1. वर्ष 2025 तक प्राथमिक
विद्यालयों में कक्षा-3 तक के सभी बच्चों में ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना होगी ।
‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और
प्रशिक्षण परिषद’ द्वारा ‘स्कूली
शिक्षा के लिये ‘राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ तैयार की
जाएगी। जिसमे छात्रों में 21वीं सदी के कौशल के विकास
हेतु अनुभव आधारित शिक्षण के साथ तार्किक चिंतन को
प्रोत्साहन और पाठ्यक्रम के बोझ को कम करते हुए कला, विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के
बीच समन्वय रहेगा। ‘एडल्ट लर्निंग’ में ‘क्वालिटी और टेक्नोलॉजी बेस्ड ऑप्शंस’ को
शामिल किया जाएगा। जैसे नये ऐप्स का निर्माण, ऑनलाइन
कोर्सेस अथवा मॉड्यूल्स, सैटेलाइट आधारित टीवी चैनल्स, ऑनलाइन किताबें, ऑनलाइन लाइब्रेरी, एडल्ट एजुकेशन सेंटर्स आदि को डेवलेप किया जाएगा। त्रि-भाषा फार्मूला रहेगा।
संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प भी होगा परंतु विद्यार्थिओं पर
कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी ।
तीन से आठ साल की उम्र तक न तो कोई भरी भरकम पाठ्यक्रम
होगा, ना किताबें होगी, अब उन्हें केवल
खेल-खेल में सिखाया जाएगा। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के तहत कक्षा तीन, पांच एवं आठ में परीक्षाएं होगीं। वहीँ 10वीं
एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को साल में दो बार आयोजित
करवाना या फिर इन परीक्षाओं को दो भागों में बांटकर ‘वस्तुनिष्ठ और ब्याख्यात्मक’
करवाने का सुझाव है। परीक्षाओं में ध्यान विद्यार्थियों
के ज्ञान-परीक्षण पर होगा। इससे विद्यार्थियों में रटने की प्रवृति ख़त्म होगी और
योग्यता और वास्तविक क्षमता का परीक्षण किया जायेगा। साथ ही अधिक अंक लाने का दबाव
कम होगा और भविष्य में अभिभावक भी कोचिंग के चक्कर से मुक्ति पा सकेंगें।
छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ की स्थापना की जाएगी। छात्रों की प्रगति के स्वमूल्यांकन तथा अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाएगा। एन.आई.ओ.एस. द्वारा ‘सेकेंडरी एजुकेशन प्रोग्राम्स’ जो ग्रेड 10 और 12 के समकक्ष होंगे, ‘वोकेशनल एजुकेशनल कोर्सेस’ ‘एडल्ट लिट्रेसी’ और ‘लाइफ इनरिचमेंट प्रोग्राम्स’ भी ऑफर किए जाएंगे। एन.सी.ई.आर.टी. एक 'नेशनल क्यूरीकुलर एंड पैडेगॉजिकल फ्रेमवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन बनायेगा जो आठ साल तक के बच्चों के लिए होगा। क्लास 6 से बच्चों को क्लास में कोडिंग भी सिखायी जाएगी।
अब विद्यालयों में स्थानीय ज्ञान और लोक विद्या
जैसी जानकारियों के लिए स्थानीय पेशेवरों को अनुबंध पर लिया जा सकता है। म्यूजिक़
और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा। ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम बनाया
जा जायेगा जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रही हैं। साथ ही संकुल (समूह) योजना
आधारित विद्यालय होंगे जो सभी तरह से सक्षम होंगे और अपने आसपास के वंचित या
सुविधाविहीन विद्यालयों को शिक्षक से लेकर उपकरण आदि की सहायता कर उन विद्यालयों
में अध्यनरत विद्यार्थिओं के प्रतिभा विकास में योगदान देंगे।
‘फंडामेंटल लिट्रेसी और न्यूमरेसी’ पर ‘मिनिस्ट्री ऑफ ह्यूमन रिर्सोस डेवलेपमेंट’ द्वारा ‘नेशनल मिशन’ तैयार किया जाएगा। जिसमें स्टूडेंट्स की हेल्थ (शारीरिक और मानसिक ) और न्यूट्रीशन का भी पूरा ख्याल रखा जाएगा, इसके लिए भोजन की ‘पौष्टिक खुराक’ और ‘नियमित स्वास्थ्य परीक्षण’ की व्यवस्था रहेंगीं। विद्यार्थियों को ‘हेल्थ कार्ड’ दिया जायेगा जिससे सेहत की ‘मॉनीटरिंग’ की जा सके। 'अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन क्यूरीकुलम' की प्लानिंग और इम्प्लीमेनटेशन, एच.आर.डी. मिनिस्ट्री, वुमेन एंड चाइल्ड डेवलेपमेंट, हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर और ट्राइबल अफेयर्स मिलकर करेंगे। हर स्कूल में छात्र–शिक्षक अनुपात दो प्रकार से होगा। संपन्न क्षेत्रों में 30:1 और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों के विद्यालयों में छात्र –शिक्षक अनुपात 25:1 रहेगा।
शिक्षा नीति में वर्ष 2022 तक ‘नेशनल
काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन’ को टीचर्स के लिए एक
समान मानक तैयार करने को कहा गया है। ये पैरामीटर ‘नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर
टीचर्स’ कहलाएंगे। यह कार्य जनरल एजुकेशन काउंसिल के निर्देशन में पूरा करेगी। बी.एड.डिग्री
कोर्स के लिए नए पैरामीटर्स होंगे।
वर्ष 2030 तक सभी बहुआयामी बी.एड.डिग्री महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पठन-पाठन के पाठ्यक्रमों को संस्थानों के अनुरूप अपग्रेड करना होगा। साल 2030 तक शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री बी.एड. होगी, इसकी अवधि चार साल हो जाएगी। साथ ही बी.एड. की दो साल की डिग्री उन ग्रेजुएट छात्रों को मिलेगी जिन्होंने किसी खास विषय में चार साल की पढ़ाई की हो। चार साल की ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों को बी.एड. की डिग्री एक साल में ही प्राप्त हो जाएगी। शिक्षा शास्त्र की सभी विधियों को शामिल करते हुए नए बी.एड. कोर्स का सिलेबस तैयार किया जायेगा। इसमें साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान, बहुस्तरीय अध्यापन और मूल्यांकन को विशेष रूप से सिखाया जाएगा। इसके अलावा ‘टीचिंग मेथड’ में टेक्नोलॉजी को खास तौर पर जोड़ा जाएगा। ई.सी.सी.ई. शिक्षकों का शुरुआती कैडर तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और शिक्षकों को एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा विकसित पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यालयीन शिक्षा के
हर स्टेज पर ‘एक्सपीरियेंशियल लर्निंग’ को शामिल किया जाएगा। यानी केवल किताबों से
पढऩे के बजाय दूसरे तरीकों से पढ़ाना, जैसे स्टोरी टेलिंग, स्पोर्ट्स के माध्यम से सीखना, आर्ट्स को शामिल
करना आदि। ‘टिपिकल क्लासेस कंडक्ट’ करने के बजाय स्टूडेंट की कम्पीटेन्सी बढ़ाने
वाले तरीके प्रयोग किए जाएंगे। टीचिंग और लर्निंग को ज्यादा इंटरैक्टिव बनाने और कोर्स
कंटेंट में 'की–कांसेप्ट्स, आइडियाज', 'एप्लीकेशंस और
प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड' पर अधिक फोकस किया जाएगा। साथ
ही क्यूरिकुलम के कंटेंट को ऐसे कम किया जाएगा जिससे सब्जेक्ट के कोर पर किसी
प्रकार का कोई प्रभाव न पड़े और उसमें ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ को भी शामिल किया जा सके
तथा इंक्वायरी, डिस्कवरी, डिस्कशन
एवं एनालिसेस बेस्ड लर्निंग को बढ़ावा दिया जा सके।
स्टूडेंट्स को ‘360 डिग्री होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड’ दिया जाएगा। इस रिपोर्ट कार्ड का मतलब है
कि सब्जेक्ट्स में मार्क्स के साथ ही स्टूडेंट की दूसरी स्किल्स और मजबूत बिंदुओं
को रिपोर्ट कार्ड में जगह दी जाए। कुल मिलाकर नया रिपोर्ट कार्ड सिर्फ पढ़ाई पर
केंद्रित नहीं होगा। एजुकेशन मिनिस्ट्री, 'नेशनल कमेटी फॉर द
इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन' का निर्माण करेगी ताकि
भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा
सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम
दिया गया है।
ऑनलाइन
एजुकेशन और ई-कंटेंट की लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए अब ई-कंटेंट हिंदी और इंग्लिश भाषा के साथ 8 मुख्य क्षेत्रीय और सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में उपलब्ध कराया जायेगा।
इस नीति से विद्यालयीन शिक्षा में बड़ा बदलाव
आने वाला है। इसमें व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर दिया गया है, जिससे विद्यार्थी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होंगे। प्रत्येक विद्यार्थी को
नौकरी व स्वरोजगार के लिए पूर्ण प्रशिक्षण देने का भी प्रावधान है। इससे आने वाले
समय में देश से बेरोजग़ारी खत्म होगी।
भाग-दो (उच्च शिक्षा )
प्रश्नों के समाधान तथा अपेक्षित परिणामों हेतु नीतियों को देखना होगा– राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ अब ‘शिक्षा मंत्रालय’ हो गया है। ‘शिक्षा मंत्रालय’ करने का उद्देश्य ‘शिक्षा और सीखने पर पुन: अधिक ध्यान आकर्षित करना है। ‘चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा’ को छोडक़र पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय के रूप में ‘भारत उच्च शिक्षा आयोग’ होगा।
वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा
में नामांकन अनुपात प्रतिशत 50 % पहुँचाने का लक्ष्य है,
जो कि वर्ष 2018 में 26.3 प्रतिशत था। इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण
संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम्स के लिए (एन.टी.ए)
‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ एक हाई क्वालिटी ‘कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट’ आयोजित करेगी, जिसके माध्यम से स्टूडेंट्स का चयन होगा। कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट के साथ ही
स्पेशलाइज्ड कॉमन सब्जेक्ट एग्जाम्स जैसे साइंस, ह्यूमैनिटीज़, आर्ट्स, वोकेशनल सब्जेक्ट्स आदि भी एन. टी. ए.
ही आयोजित करेगी।
नीति में ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जिट ऑप्शंस’ को
शामिल किया गया है। इसके तहत ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि विभिन्न कोर्सेस के किसी भी
स्टेज पर स्टूडेंट अपनी एलिजबिलिटी और च्वॉइस के हिसाब से कोर्स ज्वॉइन कर लें या
कोई खास स्टेज पूरा होने पर उसे वहीं छोड़ दें। विद्यार्थी के पाठ्यक्रम के
क्रेडिट को ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ के माध्यम से सुरक्षित स्थानान्तरित किया
जाएगा।
इस शिक्षा निति में ‘स्पेशली ऐबल्ड स्टूडेंट्स’ के लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगे,इसमें टेक्नोलॉजी बेस्ड टूल्स, सपोर्ट मैकेनिज्म, रिसोर्स सेंटर का निर्माण, असिस्टिव डिवाइसेस का प्रबंध आदि शामिल होगा। ‘इंडियन साइन लैंग्वेजेस’ को अब पूरे भारत में मानकीकृत कर ‘स्टडी मैटीरियल’ बनाया जाएगा। शिक्षा, मूल्यांकन, योजनाओं के निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग पर विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान हेतु ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ नामक एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की जाएगी।
भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये एक ‘भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान’, ‘फारसी, पाली और प्राकृत के लिये राष्ट्रीय संस्थान (या संस्थान)’ स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में भाषा विभाग को मज़बूत बनाने एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के माध्यम के रूप में मातृभाषा / स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिया गायेगा। उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाष की बाध्यता नहीं होगी। नेशनल साइंस फाउंडेशन के तर्ज पर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ लाई जाएगी जिससे पाठ्यक्रम में विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान को भी शामिल किया जाएगा।
देश में आई. आई. टी और आई. आई. एम. के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (मेरु) की स्थापना की जाएगी। ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम बनाया जायेगा, जिसके लिए ‘वर्चुअल लैब’ विकसित की जायेंगी। एजुकेशन मिनिस्ट्री, 'नेशनल कमेटी फॉर द इंटीग्रेशन ऑफ वोकेशनल एजुकेशन ' का निर्माण करेगी ताकि भारत में जरूरी ‘वोकेशनल नॉलेज’ को ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके। इसे ‘लोक विद्या’ नाम दिया गया है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोर्रोविंग और विदेशी निवेश (एफडीआई)’ के लिए कदम उठाए जाएंगे। सरकार युवा इंजीनियरों को इंटर्नशिप का अवसर देने के लिए शहरी स्थानीय निकायों के साथ कार्यक्रम शुरू करेगी। साथ ही ‘राष्ट्रीय पुलिस यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी’ का भी है। राष्ट्रीय स्टार टॉप 100 यूनिवर्सिटीज पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम शुरू सकेंगी। और 100 विदेशी विस्वविद्यलों के साथ उनका एम् ओ यू होगा।
पुरानी और इस शिक्षा नीति में प्रमुख परिवर्तन क्या हैं- विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग समाप्त होगा। एच ई सी आई के कार्यों के प्रभावी और प्रदर्शिता पूर्ण निष्पादन के लिये चार
संस्थानों / निकायों का निर्धारण किया गया जायेगा।
एम.फिल.को समाप्त किया जायेगा। अब अनुसंधान में जाने के लिये तीन साल के स्नातक डिग्री के बाद एक साल स्नातकोत्तर करके पी.एचडी. में प्रवेश लिया जा सकता है। जो छात्र इंजीनियरिंग कर रहे हैं, वे अभिनय, संगीत, कला को भी अपने विषय के साथ पढ़ सकते हैं। इसी तरह दूसरे संकाय के छात्र भी इस सुबिधा का लाभ उठा सकते हैं। यह छात्रों के न केवल मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहयोगी होगी तो उन्हें सब प्रकार के हीनभावों से भी बचाएगी।
संस्थानों को उनके प्रमाणन के आधार पर फीस की
एक उच्चतर सीमा तय करने का पारदर्शी तंत्र विकसित किया जाएगा। जिससे निजी उच्चतर
शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित सभी फीस और शुल्क पारदर्शी रूप से लिए जाएंगे
और किसी भी छात्र के नामांकन के दौरान फीस/शुल्क में कोई मनमानी वृद्धि नहीं होगी।
शिक्षा नीति-2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है ‘मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम’ लागू
होना। अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढऩे या छह सेमेस्टर पढऩे के बाद किसी
कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है। लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्जि़ट सिस्टम में एक साल के बाद पढाई छोडऩे पर
सर्टिफिक़ेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के
बाद पढाई छोडऩे के बाद डिग्री मिल जाएगी।
अगर कोई छात्र किसी कोर्स बीच में छोडक़र दूसरे
कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले
सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले
वाले कोर्स को जारी रख सकता है। इससे देश में ‘ड्राप आउट रेश्यो’ कम होगा।यह
व्यवस्था खास तौर पर ग्रामीण महिलायों, वंचित और आर्थिक रूप से निर्वल
विद्यार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, जिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके। इस शिक्षा नीति में सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, डीम्ड यूनविर्सिटी, और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए समान नियम होंगे।
देश में शोध और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के
लिए अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन की तर्ज पर एक
‘नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन’ की
स्थापना की जाएगी। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध-संस्कृति को
बढ़ावा देना है। यह स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक
बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा और बड़े प्रोजेक्टों की फाइनेंसिंग करेगा। शिक्षा
पर जी.डी.पी. का छह फीसदी खर्च करने का लक्ष्य है अत: कोई आर्थिक कठिनाई नहीं
होंगी।
मध्यप्रदेश और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020-
शिक्षा समवर्ती सूची का विषय
है इसलिए इस पर राज्य के मुख्यमंत्री जी के साथ शिक्षा मंत्रियों की
भूमिका,चिंतन और क्रियान्वन की सिधता बहुत महत्व पूर्ण है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के
विचार- “मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति आदर्श ढंग से लागू होगी। उन्होंने कहाँ, " शिक्षा के तीन उद्येश्य माने गए हैं- ज्ञान देना, कौशल देना और नागरिकता के
संस्कार देना। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेषकर व्यावसायिक शिक्षा जो छठी से
लागू होगी हमारे प्रदेश में उसे लागू किया जायेगा। शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष
ध्यान दिया जायेगा, जिससे टैलेंट पूल बनेगा और भविष्य में प्रदेश की शिक्षा का
विकास होगा। दस पंद्रह गाँव के बीच में एक-एक सर्व सुविधायुक्त विद्यालय बनायें
जायेंगे जहाँ पर्याप्त योग्य शिक्षक रहेंगे। ऐसे विद्यालयों में विद्यार्थिओं को यातायात सुविधाए रहेंगी तथा पड़ोस के विद्यालयों को भी इनके
माध्यम से सक्षम बनाया जायेगा। संगीत नृत्य योग एवं भारतीय संस्कार की शिक्षा देना
भी हमारा लक्ष्य है। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों को सत प्रतिशत
प्लेसमेंट प्राप्त हो इसकी तरफ हमारा ध्यान है, बेरोजगारी दूर करना हमारा लक्ष्य
है। वास्तव में शिक्षा जगत में सुधार की असीम संभावनाएं है, इसलिए एक तरफ शिक्षकों
का मान सम्मान सुनिश्चित करते हुए भावी पीढ़ी के भविष्य को गढ़ने में इस दिशा में
काम करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से हम शिक्षा जगत का परिदृश्य
बदलेंगे। प्रायवेट सेक्टर में भी शिक्षक का शोषण न हो, गैर जरूरी फीस भी अभिभावकों
से न ली जाए इसके लिए जल्दी हम एक्ट (क़ानून) लेकर आने वाले हैं। साथ ही प्रायवेट
सेक्टर की भूमिका शिक्षा के क्षेत्र में बढे यह भी हमारी सरकार सुनिश्चित करेगी।” स्पष्ट है की प्रदेश
सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए काफी गंभीर है।
यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लागू होने में शासन, प्रशासन, अभिभावक, वैज्ञानिक और शिक्षक पूरे मनोयोग से सामने आते हैं तो निश्चित रूप से अपने जड़ों से जुडा विश्वमानव तैयार होगा। इसमें शिक्षा की आटोनामी और ‘टैलेंट-टेक्नोलॉजी’ से गरीब विद्यार्थियों को बढऩे का मौका प्राप्त होगा, लेकिन इसमें जिन शिक्षकों और कुलपतियों, अध्ययन मंडलों की (पाठ्य निर्माण में ) भूमिका रहेगी उनके नियुक्ति और निर्माण में भी गंभीर परिवर्तन लाना होगा।
प्रो उमेश कुमार सिंह
Umeshksingh58@gmail.com
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