मध्यप्रदेश के 750 निजी महाविद्यालयों की जा़च होगी?
ध्यान रहे अधिकतम कालेज नेताओं और प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के हैं।
या फिर दूसरे दर्जे के ठेकेदारों के अथवा सत्ता और विपक्ष के रसूखदारों के चहेतों के।
मुझे विश्वास है जो हाथ डालेगा या तो जलेगा या फेंटा जायेगा। हां यदि नर्सिंग कॉलेज की तरह न्यायालय हस्तक्षेप करे तो कुछ खारापन दूर हो सकता है।
इसमें संचालनालय से लेकर मंत्रालय तक की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
सत्ता के सत्य को समझने वालों को मैं पिछले कई सालों से इसमें लिप्त हाथों की जांच के लिए कह रहा था किन्तु वे हाथ सत्ता शीर्ष के संरक्षण में लगातार वर्षों से प्रशासनिक मुखियाओं के गुलाम की तरह राजा रानियों के पत्ते फेंट रहे थे।
दरअसल कुलपतियों की नियुक्ति की अबूझ पहेली जो मध्यप्रदेश में ही नहीं देश भर में चल रही है वह इसका बड़ा कारण है।
केवल टीका लगा माथा और बगुल ध्यान में मस्त हस्त जब कुलपति बन कलम घिसने लगें तो रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर ही बंटेगी।
आज भी यदि कुलपति और रजिस्ट्रार प्राशासनिक रूप से दक्ष और चखने पर संतुष्ट होने वाले नहीं बनाये जायेंगे तो यह समस्या सुलझने वाली नहीं।
सब कुछ आंखों के सामने देख कर भी क्या यह समझ में नहीं आता कि एक ही व्यक्ति दो, तीन वार कभी यहां कभी वहां कुलपति कैसे बन रहा है? प्रोफेसर कुलसचिव क्यों बनना चाहता है?
वर्षों से कुलसचिवों की भर्ती बंद है, अनुपात से अधिक प्रोफेसर प्रतिनियुक्ति पर कुलसचिव बन रहे हैं। आखिर जो उपकुलसचिव वर्षों से काम कर रहे हैं उनका अवसर क्यों छीना जा रहा है?
प्रश्न बहुत से खड़े हो रहे हैं। यह भी एक जांच का विषय है कि प्राथमिक योग्यता भी पूरी न करने वाले कैसे वर्षों से महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं?
पर जांच कौन करेगा? हमारे, तुम्हारे का प्रेम जो पसरा हुआ है।
सफाई घर से करने का रिवाज ही ख़त्म हो गया है। मलाईदार शब्द एक गहरी सार्थकता जो प्राप्त कर सका है। आखिर शासन ने आनंद विभाग जो खोल रखा है।
विद्यार्थियों के हित और राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की संकल्पना और गुणवत्ता के लिए आवश्यक है कि शासन इसे गंभीरता से ले और राजनीति इसमें हस्तक्षेप न करे।
दरअसल अभी भी प्रदेश में बहुत से निजी महाविद्यालय हैं जो शिक्षा के प्रति समर्पित भाव से शासकीय महाविद्यालयों से आगे बढ़कर काम कर रहे हैं, जांच से उनकी भी प्रतिष्ठा बचेगी।
15/01/25