Thursday, 20 October 2022

सुप्रभात के साथ 
मेरे मित्र ने भेजा 
पुष्पित यौवन भरा गुच्छ 
उंगलियां मचल उंठी 
कुछ इस प्रकार 
नियति है देखना इनको 
यह जानते हुए भी 
कल इन्हें झड़ना है 
मुस्कराते इनके पराग 
मलय को उत्तेजित ही नहीं 
विवश कर रहे हैं 
पहुंचाने वंचितों की वस्तियों में 
जहां शीलन भरी वैचारिक 
गंदगी नथुनों को कर रही बीमार 
माली, मालिक, बगीचा, 
पड़ोसी टेसू और बबूल भी 
नहीं छोड़ना चाहता इन्हें 
किन्तु कोई भी तैयार नहीं 
स्थानीपन्न होने को