सुप्रभात के साथ
मेरे मित्र ने भेजा
पुष्पित यौवन भरा गुच्छ
उंगलियां मचल उंठी
कुछ इस प्रकार
नियति है देखना इनको
यह जानते हुए भी
कल इन्हें झड़ना है
मुस्कराते इनके पराग
मलय को उत्तेजित ही नहीं
विवश कर रहे हैं
पहुंचाने वंचितों की वस्तियों में
जहां शीलन भरी वैचारिक
गंदगी नथुनों को कर रही बीमार
माली, मालिक, बगीचा,
पड़ोसी टेसू और बबूल भी
नहीं छोड़ना चाहता इन्हें
किन्तु कोई भी तैयार नहीं
स्थानीपन्न होने को