Tuesday, 28 December 2021

31 December 2022 , भारतीय जीवन मूल्य

"जैसे जैसे ३१ दिसम्बर पास आ रहा है, मद्यविक्रयकेन्द्रों में भीड़ बढ़ रहीं है । 
वाह रे नया वर्ष मनाने का बेहुदा ढँग !"
- यह एक वयोवृद्ध आचार्य की पीड़ा है।

मेरा मत है-
मधुशाला अधिक उचित है। ,🙏 हमारा सामाजिक जीवन भ्रमित है। हम लोकायतन दर्शन के अधिकाधिक पास जा रहे हैं।
व्यवहार चतुराई भरा है। क्रिस्चियन स्कूल घर में चल रहे हैं।

महाजन भी इन दिनों सपरिवार मौज में रहते हैं,तो भूखा पेट मधुशाला के मार्ग से ही जीवन खो रहा है।
दूर बैठा विलियम वर्ड्सवर्थ भारत की चेतना समझता है-"Our birth is but a sleep and forgetting."
आगे कहता है- "The world is too much with us."
हमारा सामूहिक आध्यात्मिक प्रयास कमजोर हुआ है। हम यांत्रिक हो गये हैं।

इसलिए जीवन नष्ट हो रहा है।

 नीरस, उपेक्षित, वंचित  भौतिक जीवन भी एक कारण है।

Friday, 10 December 2021

भारत की कामना सम्प्रदायिक आधार पर नहीं जीवमात्र पर आधारित है। इसका प्रकटीकरण योग के बोध से हुआ।

योग शास्त्र में ऐसे सूक्ष्म सिद्धांतों की व्याख्या व स्थापना है जो आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए भी विद्यमान है ।  

इस व्यवहारिक दर्शन का कार्यक्षेत्र भौतिक धरातल से लेकर उच्च आध्यात्मिक लोक तक फैला है। इन  विविध स्तरों से जुड़ी हुई इसकी भिन्न-भिन्न शाखाएं हैं। 

उदाहरण के लिए-  
हठयोग में केवल शारीरिक अभ्यास है । 
मंत्र योग  स्वर से संबंधित है । 
लय योग मानसिक प्रक्रिया है। 
राजयोग मन के भी परे जाकर अध्यात्म की भूमि का संस्पर्श करता है । 
हमरा कर्म योग आध्यात्मिक की आरंभिक तैयारी करता है।  
भक्ति योग ईश्वर के प्रति प्रेम भाव पर आधारित है।
ध्यान योग में ध्यान की क्रिया का अवलंबन होता है । 
व ज्ञान योग आत्मसाक्षात्कार द्वारा संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना है । 

आत्मविज्ञान सदा शास्त्रीय होता है और उसका मापदंड उसका सार्वभौम उपयोग होना  चाहिए ।

 यह किसी वर्ग अथवा देश का एकाधिकार नहीं हो सकता।  चाहे इस  ज्ञान को उद्घाटित करने का श्रेय केवल भारतीय ऋषियों को ही क्यों ना रहा हो।

दो बातें -
एक-  ऋषियों की प्राचीन साधना स्थली कहां थी ? -
उत्तर-  आर्य्यावर्त्त। जम्बूद्वीप। भरतखंड। अजनाभवर्ष  में।

दो- दुनिया के इस श्रेष्ठ मार्ग के दर्शन की भूमि और जन को यदि ' अनेकता से युक्त अशुद्ध चेतना' ने ग्रसना प्रारंभ किया (जो सतत है) तो इस विश्व कल्याणकारी दृष्टि का क्या  होगा? 

इसलिए क्या हमें नहीं लगता कि  हमें क्रिया योग द्वारा समान नागरिक आचार संहिता और नागरिकता का समर्थन करना चाहिए।
11/12/2019
खंडवा