इससे यह तो साफ हो गया कि आठवां, वह मार्क्स नहीं था।
दूसरा यह विश्वास भी स्वागत योग्य है कि आठवां है।
जब हम आठवें की बात करते हैं तो वह धर्म स्थापना की बात करता है।
और उसका धर्म साधुता की रक्षा और दुष्टवृत्तियों का नाश ही है।
दूसरा उसका कहना है परोपकार ही पुण्य है और दूसरे को सताना पाप है।
अब जरा समझें-
जब दुनिया में सामी पंथ नहीं था या यूं कहें कि जब इनका अस्तित्व भारत में नहीं था तो भारत उस त्रेता पुरुष के जाने के बाद भारत कैसा था ?
उस समय जैन की अहिंसा और बुद्ध की करूणा भी थी तो शंकर का ब्रह्म भी और अन्य आचार्यों का सगुण साकार भी।
तब यदि रावण,कंश आदि थे तो क्या आज अपने को सामी, मार्क्स आदि को उसी श्रेणी में नहीं रखना होगा!!
अन्त में -१.धर्म की स्थापना के लिए प्रचलित सामी शर्तो, कालातीत रूढ़ियों, गैरजरूरी मान्यताओं का विनाश।
२. सारे धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ।
अत: सत्ता नहीं लोक का गौरवबोध और आत्मविश्वास वापस लाना।
अर्थात् जाति, वर्ण, पूजापंथ, लोक हितैषी मान्यताओं को छति पहुंचाये बिना मानवता की सेवा।
भारत यह दोनों कार्य अद्भुत क्षमता और दूरदृष्टि के साथ कर रहा है।
बस परिवर्तन को सकारात्मक भाव से तथा नायक के विश्वास के साथ देखना होगा।
2025 बहुत महत्त्वपूर्ण वर्ष होगा जहां हमें परिवर्तन की आभा उसी तरह स्पष्ट दिखेगी जैसे भगवान भास्कर के आने के पूर्व प्भराची में भगवा दिखता है।
बिना भगवा बोध के मार्तंड का ताप सहन कर पाना आधे-अधूरे, खंडित चिंतन को सम्भव नहीं।
आभार